अत्याचार और शोषण के बीच अंग्रेजों ने कई ऐसी चीजें और व्यवस्थाएं भी छोड़ गए थे जो कि आज भी हमारे काम आ रही हैं। यकीनन ये सारी व्यवस्थाएं उन्होंने अपने लिए की थी, लेकिन आजाद भारत की सरकारों के लिए वे दिशासूचक का काम कर गईं। उनमें से एक 1897 का महामारी रोकथाम कानून भी है जो कि संकट की इस घड़ी में हमारे काम आ रहा है। यही नहीं अत्याधुनिक विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी के इस युग में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य का जो विशालतंत्र हमारे सामने खड़ा है उसकी बुनियाद भी वहीं अंग्रेज छोड़ कर चले गए थे।
कोरोना महामारी में अंग्रेजों का कानून ही संकटमोचक
कोविड-19 की तरह जब 1918 में स्पेनिश फ्लू की महामारी ने दुनिया में हाहाकार मचाया था तो उस समय भी आज की तरह चिकित्सा विज्ञान किंर्तव्यविमूढ़ था, इसलिए उस समय भी अंग्रेजों का बुबोनिक प्लेग से निपटने के लिए बनाया गया महामारी रोग कानून 1897 ही काम आया। उसके बाद भी भारत में जब भी हैजा, प्लेग, चेचक, मलेरिया एवं 1898 के असम के कालाजार एवं बेरीबेरी जैसी बीमारियां फैलीं तो यही ब्रिटिश कालीन कानून याद आया, जैसा कि कोविड-19 की महामारी फैलने पर भारत सरकार को इस बार याद आया।
अंग्रेजों के जाने के बाद स्वतंत्र भारत में भी वर्ष 2018 में गुजरात में हैजा रोकने, 2015 में डेंगू के नियंत्रण के लिए चण्डीगढ़ में, 2009 में स्वाइन फ्लू रोकने के लिए पुणे में और आज देशभर में कोरोना वायरस की महामारी रोकने के लिए एकमात्र विकल्प के तौर पर इस कानून का प्रयोग किया जा रहा है। भले ही सप्तम् अनुसूची के तहत कानून व्यवस्था राज्य सरकार का दायित्व है, फिर भी भारत सरकार ने इसी कानून का डण्डा सारे देश पर घुमा रखा है। भारत ही क्यों ? आज सारे संसार में महामारी से बचने के लिए सोशियल डिस्टेंसिंग की जा रही है, जो कि एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897 का ही एक सबक है।