एक उजली सुबह, जब सूरज की पहली किरणें भारत की बर्फ़ से ढकी चोटियों को रौशन कर रही थीं, एक युवक दलदली घास के मैदान में धीरे-धीरे क़दम बढ़ा रहा था।
विकास राणा, भारत के पर्वतीय उत्तराखण्ड राज्य के 30 युवाओं के एक समूह का हिस्सा हैं, जिन्होंने भारत के सबसे अनमोल प्राकृतिक संसाधनों में से एक की रक्षा के लिये प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
हाथ में पेंसिल और मापन यंत्र लिये, वह समय-समय पर ज़मीन पर झुककर कुछ नापते हैं और अपनी कॉपी में लिखते जाते हैं।
हिमालय क्षेत्र की ऊँचाइयों पर आर्द्रभूमियाँ (wetlands) स्थित हैं। समुद्र तल से तीन हज़ार मीटर से अधिक ऊँचाई पर, हिमनदों से पिघले पानी से बने तालाब, झील, घास के मैदान और दलदल मौजूद हैं।
आर्द्रभूमियाँ पर्वतीय पारिस्थितिक तंत्रों के लिये बेहद महत्वपूर्ण हैं।
वे बरसात के मौसम में अतिरिक्त पानी सोखती हैं और शुष्क महीनों के दौरान इसे छोड़ कर अनेक महत्वपूर्ण नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करती हैं।
UNDP India
समुदायों को संरक्षण से जोड़ने के प्रयास में, स्थानीय स्वैच्छिक कार्यकर्ता, इस पहल के ज़रिये, पक्षी और वन्यजीव निगरानी जैसे कौशल सीखते हैं।
इससे पूरे साल, जल की आपूर्ति सुनिश्चित होती है और बाढ़ का जोखिम कम होता है। अलग-थलग होने के कारण, वे कईं दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों के लिये एक सुरक्षित आवास भी प्रदान करती हैं।
UNDP की ‘SECURE Himalaya’ पहल के अन्तर्गत, ऊँचे इलाक़ों में स्थित आर्द्रभूमि की रक्षा के लिये, हिमालयी क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों के साथ समन्वित प्रयास किये जा रहे हैं।
यह कार्यक्रम भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के साथ साझेदारी में है, और वैश्विक पर्यावरण सुविधा द्वारा समर्थित है।
ऊँचाई पर स्थित आर्द्रभूमि, नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करने में मदद करती है।
उत्तराखण्ड में ‘SECURE Himalaya’ की राज्य परियोजना अधिकारी अपर्णा पाण्डे ने कहा, "हमारा उद्देश्य है, संरक्षण और आजीविका के बीच एक सेतु बनाना।"
"युवाओं को नए कौशल देकर, हम उन्हें अपनी प्राकृतिक विरासत, समृद्ध संस्कृति और परम्पराओं पर गर्व करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहते हैं और अपने आसपास के लोगों को भी ऐसा करने के लिये प्रेरित करना चाहते हैं।"
इस कार्यक्रम के ज़रिये, आर्द्रभूमि की निगरानी के लिये, समुदाय शासित संरक्षण संस्थानों को एकजुट किया जाता है।
UNDP India/Siddharth Nair
पक्षियों की आवाजाही के रुझानों की निगरानी के ज़रिये, आर्द्रभूमि के स्वास्थ्य का आकलन करने में मदद मिलती है।
विकास राणा समेत अन्य स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं को, पक्षी और वन्यजीव की निगरानी जैसे तकनीकी कौशल सिखाये जाते हैं। इससे स्थानीय सरकारों के समक्ष मौजूद जन-बल की कमी भी पूरी होती है।
सदियों से हिमालय में ऊँची आर्द्रभूमियों के आसपास मानव बस्तियाँ मौज़ूद रही हैं। ये समुदाय पारम्परिक ज्ञान का एक समृद्ध भण्डार हैं जो प्रकृति के साथ समरसतापूर्ण जीवन जीते हैं।
UNDP India
पशुधन के साथ-साथ, आर्द्रभूमि की उपजाऊ परिस्थितियों में पारम्परिक और आधुनिक चिकित्सा में उपयोग की जाने वाली कई जड़ी-बूटियाँ और पौधे भी उगते हैं।
उनकी संस्कृतियों में प्रकृति और सभी जीवित प्राणियों के प्रति गहरा सम्मान है।
जीवन की उत्पत्ति की कारक, आर्द्रभूमि पवित्र मानी जाती हैं और सभी पर्वतीय संस्कृतियों में उनकी सुरक्षा एवं टिकाऊ उपयोग सुनिश्चित करने के लिये रीति-रिवाज़ और परम्पराएँ हैं।
वे चरागाहों के लिये, कृषि और पशुधन पालन के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ भी सृजित करती हैं।
इन क्षेत्रों में उगने वाली औषधीय जड़ी-बूटियों और पौधों का उपयोग पारम्परिक और आधुनिक चिकित्सा, दोनों में किया जाता है।
Tso Kar और Tso Moriri, वैश्विक महत्व की इन दो आर्दभूमियों के बीच स्थित, सुमदो गाँव के निवासी, नवांग चोंजोर कहते हैं, “ये आर्द्रभूमियाँ हमें सब कुछ प्रदान करती हैं।"
"हमारी भेड़ों के लिये भोजन, जल, घास। पिछले कुछ वर्षों में, वे समय से पहले सूखने लगी हैं।"
"आजकल पक्षी भी कम दिखाई देते हैं, जो अच्छा नहीं है। मैं अपने पोते-पोतियों से कहता हूँ कि हमें इसके लिये कुछ करना चाहिये।”
विकास राणा और उनके अन्य साथी यहाँ इसलिये काम कर रहे हैं क्योंकि जलवायु संकट से ऊँचाई वाली आर्द्रभूमि और उनके आसपास रहने वाले समुदायों के लिये ख़तरा बढ़ रहा है।
वैश्विक तापमान में वृद्धि, मौसम के मिजाज़ में बदलाव और टिकाऊ पर्यटन के तौर-तरीक़ों के अभाव कारण कई आर्द्रभूमियाँ सूखती जा रही हैं।
वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास बाधित हो रहे हैं, विशेष रूप से प्रवासी पक्षियों के, जो हर साल हज़ारों मील की यात्रा करके, इन क्षेत्रों का विश्राम के लिये या प्रजनन स्थल के रूप में उपयोग करते हैं।
UNDP India/Siddharth Nair
आर्द्रभूमि के आसपास वनस्पतियों के नुक़सान के कारण, स्थानीय चरवाहों के पशु-मवेशियों के लिये मुश्किलें बढ़ी हैं।
जल की कमी से खेती के लिये सिंचाई और पशुओं का चारा प्रभावित होता है, जोकि इन क्षेत्रों में जीविकोपार्जन के मुख्य साधन हैं।
इससे बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का ख़तरा भी बढ़ जाता है।
ऊँचाई पर स्थित आर्द्रभूमि और समुदायों के संरक्षण को एक साथ सुनिश्चित किया जा सकता है।
हमें इन पारिस्थितिक तंत्रों के सदियों पुराने पारम्परिक ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ने की ज़रूरत है, ताकि आर्द्रभूमि का फलना-फूलना और उन पर निर्भर समुदाय की सहायता सुनिश्चित की जा सके।
UNDP India
अपने पारम्परिक ज्ञान के साथ स्थानीय समुदाय, संरक्षण अधिकारियों के लिये जानकारी की अथाह सम्पदा हैं।
यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ।