भारत में अनेकता के रहते केवल उन्हीं क्षेत्रों में एकता भी दिखाई दे रही है, जिनमें हर वर्ग और जाति को सहायता, शुल्क, किराया-भाड़ा, मूल्य, रियायत, छूट, कटौती और कर आदि में शासन समान नीति अपना रहा है। जहां भी जातीय आधार पर पात्रता तय होती या रिक्त पदों पर भर्ती, पदोन्नति आदि की छूटें प्रदत्त हैं, वहां ये एकता में बाधक बन रही हैं।
गौरतलब है कि सरकार को हर वर्ग का इस तरह ध्यान रखना चाहिए कि सभी वर्गों के हित सुरक्षित रहें, किंतु सियासी दलों ने तुष्टीकरण और वोट बैंक के मद्देनजर ऐसे कानून बना दिए हैं कि न्यायालय और सरकार मजबूरन सबको समान रूप से न्याय प्रदान नहीं कर सकते।
हालांकि आरक्षण के पचास फीसद सीमा पर सुप्रीम कोर्ट भी विचार कर रहा है, पर सियासी दल नए कानून बना कर न्याय में बाधक बन जाते हैं।
– बीएल शर्मा ‘अकिंचन’, तराना, उज्जैन