– पुनम कौशल
मैं नहीं जानती कि किसी और की पत्रकारिता पर सवाल उठाने का हक मुझे है या नहीं। लेकिन मैं ये जानती हूं कि पाठकों और दर्शकों को सच जानने का हक है।
श्रीलंका के मौजूदा आर्थिक संकट पर बहुत से भारतीय पत्रकारों ने रिपोर्ट की हैं। कई ने शानदार रिपोर्टों की हैं। लेकिन मैं टीवी-9 भारतवर्ष की एक रिपोर्ट के बारे में लिख रही हूं। टीवी-9 इस समय टीआरपी के हिसाब से देश का नंबर वन चैनल है। ऐसे में मैं ये समझती हूं कि वहां काम करने वाले पत्रकार अपने आप को पहले से अधिक ज़िम्मेदार महसूस कर रहे होंगे।
लेकिन टीवी-9 ने श्रीलंका के हमबनटोटा के गांव से जो रिपोर्ट की वो सच से परे है। टीवी-9 के रिपोर्टर ने ये बताया कि ये गांव चीन का बसाया हुआ है जहां उइगर गुलाम काम करते हैं।
रिपोर्टर ने बार-बार ये कहा कि यहां पहुंचना बेहद मुश्किल है, रास्ते में कई चैकपोस्ट हैं, यहां सैनिकों का पहरा है और देखे जाने पर जान का खतरा है। रिपोर्टर बार-बार ये कहता है कि कैमरा छुपाकर रिकॉर्ड करना पड़ रहा है।
लेकिन जमीनी सच ये है कि जिस जू ची गांव का वो जिक्र कर रहे थे वो 2004 की विनाशकारी सूनामी के बाद ताइवान ने स्थानीय लोगों के लिए बसाया था। यहां वो परिवार रहते हैं जिनके घर सूनामी में उजड़ गए थे। यहां पहुंचने में किसी तरह का कोई खतरा नहीं हैं। मैं अकेले ही वहां पहुंची। लोग बहुत मिलनसार हैं और खुलकर बात करते हैं। ये अलग बात है कि इन दिनों वो बेहद परेशान हैं।
टीवी-9 की रिपोर्ट देखने के बाद वहां जाने को लेकर मेरे मन में भी डर था। लेकिन जब मैं वहां पहुंची और सच को करीब से देखा तो भारत की टीवी पत्रकारिता पर बहुत अफसोस हुआ। यहां कैमरा या अपनी पहचान छुपाने की जरूरत नहीं पड़ती।
मेरे मन में ये सवाल कौंध रहा था कि क्या यहां कि सच्चाई रिपोर्टर को नहीं दिख रही होगी। और अगर दिख रही थी तो किस मजबूरी में उसने डर और खौफ का माहौल बनाया और हर लाइन झूठ बोली। मन में ये सवाल भी बार-बार कौंध रहा था कि हम अपने दर्शकों को डर और खौफ क्यों परोस रहे हैं। या इसका दूसरी पहलू ये है कि हमारे दर्शकों को भी स्क्रीन पर सिर्फ सनसनी और ड्रामा ही पसंद है। इस तरह की रिपोर्टिंग से भारतीय मीडिया की साख भी खराब होती है।
सच करीब से दिखता है और जब एक रिपोर्टर सच के करीब हो, उसे अपने पाठकों और दर्शकों को सच ही परोसना चाहिए।