डॉ. जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में 20 अगस्त को चीन की राष्ट्रीय विधायिका ने सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा लाई गई तीन बच्चों की जनसंख्या नीति को मंजूरी दी है।
चूंकि हमारे देश में इस समय राष्ट्रीय स्तर पर कोई नई जनसंख्या नीति प्रस्तुत होने की संभावना नहीं है। ऐसे में चीन की नई जनसंख्या नीति से सबक लेते हुए विभिन्न राज्यों के द्वारा अपनी उपयुक्तता के अनुरूप दो या तीन बच्चों की नई प्रादेशिक जनसंख्या नीति बनाई जानी जरूरी दिखाई दे रही है। ज्ञात हो कि उत्तरप्रदेश दो बच्चों की जनसंख्या नीति की डगर पर आगे बढ़ चुका है।
गौरतलब है कि चीन में 1979 में एक बच्चे की नीति सख्ती से लागू की गई थी। इस नीति को तोड़ने वाले जोड़ों और उनके बच्चों से सरकारी सुविधाएं छीन ली जाती थीं। आबादी में बूढ़ों की संख्या बढ़ने और जन्म दर कम होने के बाद चीन ने इस नीति को बदलकर 2016 में टू-चाइल्ड पॉलिसी यानी दो बच्चों की नीति को लागू कर दिया, लेकिन इससे भी चीन में वांछित जन्म दर प्राप्त नहीं हो पाई।
चीन में मई 2021 की शुरुआत में प्राप्त जनगणना के नए आंकड़ों से पता चला कि 1950 के दशक के बाद से पिछले दशक के दौरान जनसंख्या सबसे धीमी दर से बढ़ी है।
चीन की जनसंख्या 2019 की तुलना में 2020 में 0.53 प्रतिशत बढ़कर 141 करोड़ ही हो पाई है। चीन की नई जनगणना के आंकड़ों से यह भी पता चला कि चीन जिस कार्यबल संकट का सामना कर रहा था, वह संकट और अधिक गहरा सकता है। ऐसे में इस साल मई में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना ने दो बच्चों की अपनी सख्त नीति में छूट देते हुए सभी दंपतियों को तीन तक बच्चे पैदा करने की जो अनुमति दी थी, उसे अब नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) की स्थायी समिति ने मंजूरी दी है।
डॉ. जयंतीलाल भंडारी
ए कानून में बच्चों के पालन-पोषण और उनकी शिक्षा का खर्च कम करने के साथ ही परिवार का बोझ कम करने के विभिन्न शैक्षणिक, वित्तीय और रोजगार संबंधी प्रोत्साहन सुनिश्चित किए गए हैं। उल्लेखनीय है कि विगत 11 जुलाई को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश जनसंख्या नीति 2021-2030 जारी की है। इस नीति के तहत दो से अधिक बच्चे होने पर सरकारी नौकरियों में आवेदन से लेकर स्थानीय निकायों में चुनाव लड़ने पर रोक लगाने और सरकारी योजनाओं का लाभ न दिए जाने की बात कही गई है।
इस नई जनसंख्या नीति का मकसद सभी लोगों के लिए जीवन के प्रत्येक चरण में गुणवत्ता में सुधार लाना है। इस नीति का उद्देश्य जनसंख्या स्थिरीकरण का लक्ष्य प्राप्त करना, मातृ मृत्यु और बीमारियों के फैलाव पर नियंत्रण, नवजात और पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों की मृत्यु-रोकना और उनकी पोषण स्थिति में सुधार करना है। खासतौर से प्रदेश में वर्ष जनसंख्या नीति में जन्म दर को 2026 तक 2.1 फीसदी और 2030 तक 1.9 फीसदी तक लाने का लक्ष्य रखा गया है।
अब उत्तर प्रदेश की तरह असम भी हम दो, हमारे दो बच्चों की नीति पर आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रहा है। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि देश के विभिन्न राज्यों में भी तेजी से बढ़ती जनसंख्या का संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। ऐसे में देश के अन्य राज्यों के द्वारा भी अपनी- उपयुक्तता के अनुरूप जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए आगे बढ़ना जरूरी दिखाई दे रहा है। ज्ञातव्य कि इन दिनों देश की जनसंख्या से संबंधित विभिन्न रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि भारत में छलांगें लगाकर बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण आर्थिक-सामाजिक चुनौतियां लगातार विकराल रूप लेती जा रही हैं।
नि:संदेह बढ़ती जनसंख्या के कारण देश गरीबी, स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल और सार्वजनिक सेवाओं की कारगर प्राप्ति जैसे मापदंडों पर बहुत पीछे दिखाई दे रहा है तथा देश के अधिकांश लोग गरिमामय जीवन से दूर हो गए हैं।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के मुद्दों पर प्रकाशित मानव विकास सूचकांक 2020 में 189 देशों की सूची में भारत 131वें पायदान पर है। वैश्विक भूख सूचकांक 2020 में 107 देशों की सूची में भारत 94वें स्थान पर है। विश्व बैंक के द्वारा तैयार किए गए 174 देशों के वार्षिक मानव पूंजी सूचकांक 2020 में भारत का 116वां स्थान है। यह सूचकांक मानव पूंजी के प्रमुख घटकों स्वास्थ्य, जीवन प्रत्याशा, स्कूल में नामांकन और कुपोषण पर आधारित है।