तालिबान का इतिहास और शरिया कानून

(Picture Courtesy: AFP)

अफगानिस्तान पर पूरी तरह से अब तालिबान का कब्जा हो चला है। अगर तालिबान सरकार बना लेता है, तो समीकरण पूरी तरह से बदल जाएंगे।

चीन और पाकिस्तान जैसे देश तालिबान का खुला समर्थन कर रहे हैं। तालिबान एक ऐसा संगठन है, जो कट्टर विचारधाराओं वाला है। पश्तो भाषा में तालिबान का अर्थ होता है छात्र, ऐसे छात्र जो इस्लामिक कट्टरपंथी विचारधाराओं का खुला समर्थन करते हैं।

इस संगठन की शुरुआत 1990 में हुई थी। जब सोवियत संघ यानी रूस अपने सेना लेकर अफगानिस्तान छोड़ रहा था। 10 सालों तक अफगान की धरती पर रूस की मौजूदगी रही और 22 सालों तक अमेरिका की। 

कैसे हुआ तालिबान का उदय कहते हैं कि सऊदी अरब अकेला ऐसा देश है। जिसने तालिबान की नींव रखने में मदद की थी। साल 1990 में अफगानिस्तान में पश्तून आंदोलन अपने चरम पर था। उसी वक्त सऊदी अरब से समर्थन मिल गया था।

इस आंदोलन का मकसद साफ था कि लोगों को इस्लामिक मदरसों में भेजना और सुन्नी इस्लाम की कट्टरवादी मान्यताओं का प्रचार-प्रसार करना। इसके बाद अफगानिस्तान में इसका विस्तार हुआ। लेकिन तालिबान का जन्म पाकिस्तान में हुआ था।

कहते हैं कि तालिबान ने अफगान और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में शरिया कानून, शांति और सुरक्षा देना का वादा किया था। 6 साल के अंदर ही तालिबान ने 1996 में काबुल पर कब्जा कर लिया। ये दूसरी बार काबुल पर कब्जा हुआ है। उस वक्त अमेरिका उसके साथ था और अब अफगान से अपनी सेना को बुलाकर तालिबान की अनौपचारिक रूप से मदद की जा रही है।

प्रकाशित तारीख : 2021-08-23 08:11:00

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