महामारी में मानवता न खोएं

PTI
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यह एक सुखद संकेत है कि देश में महामारी की रफ़्तार में थोड़ी बहुत कमी दिख रही है, लेकिन मौत का आंकड़ा अभी भी परेशान कर रहा है। सरकारों की तमाम कोशिशों के बावजूद अभी भी दवाओं के लिए,आक्सीजन के लिए अफरा-तफरी के हालात हैं।

सवाल लोगों के जीवन-मरण का है, ऐसे में लापरवाहियों यानी समय से ऑक्सीजन की आपूर्ति न होना भी लोगों की जान ले रहा है। निसंदेह यह संकट का चुनौतीपूर्ण समय है, ऐसे में लापरवाहियों का जो नजारा सामने आ रहा है, वह तकलीफ को और बढ़ाने वाला है।

 उदाहरण के लिए कई राज्यों में उनके अस्पतालों में अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस वैन्टीलेटर पहुंच  चुके हैं, लेकिन उनकी पन्नी तक नहीं हटाई गई है और यह सूरते  हाल कई महीनों से है, यह पूछने पर कि इनका उपयोग क्यों नहीं हो रहा है तो जो बताया जा रहा है, वह सरकारी तंत्र के लापरवाही का अधुनातम और भयानक स्वरूप नहीं है, बल्कि वही चेहरा है, जिसके हम आदी हैं और जिसे झकझोर कर कार्यरत करने में हमारी सरकार में  बैठे लोग आपदा के इस तांडव के समय भी नाकाम रहे हैं।

किसी के पास उसका संचालन करने के लिए, उसे चालू करने के लिए प्रशिक्षित स्टाफ नहीं है, किसी की पास कुछ और बहाना है। महीनों से पडी सुविधाएं धूल खा रही हैं और बीमारी की चपेट में लोग ऑक्सीजन के लिए  दर-दर भटक रहे हैं, तो इस दौरान इनके संचालन के लिए पात्र स्टाफ की व्यवस्था क्यों नहीं की गयी। यही नहीं कहीं-कहीं तो सरकार द्वारा आपदा से लड़ने के लिए उपलब्ध कराए गए या प्रदत्त  उपकरण और अन्य सामान तो निजी जगहों पर पाए जा रहे हैं।

उनकी कालाबजारी हो रही है। यह लज्जा की बात है हमारे समाज के ऐसे भी लोग अंग हैं, जिनकी संवेदना इस कदर मर चुकी है कि वे आपदा के इस काल में भी अपनी अधमता के प्रदर्शन से नहीं बच पा रहे हैं, तो ऐसे  दया-माया  हीन पशुओं में  कैसे संवेदना और मानवता जगाई जाय और उन्हें उनकी अकर्मण्यता के लिए जबाबदेह बनाया जाय और उनके विभाग को आपदा काल के अनुरूप कार्यरत किया जाए। इसके लिए एक और सख्त अभियान कोरोना की इस लड़ाई के साथ ही शुरू करने का जरूरत है।

कारण इनकी ऐसी लापरवाहियां लोगों का कष्ट दूर नहीं कर रही हैं और बढ़ा रहीं हैं और उन्हें मजबूर कर रही हैं उन निजी अस्पतालों में जाने के लिए जो सिर्फ एक ही ध्येय से अस्पताल चलाते हैं कि उन्हें किसी भी तरह से पैसा बनाना है। सख्ती हो रही है, मामले दर्ज हो रहे हैं, आलोचना हो रही है,निंदा हो रही है, लेकिन ये ऐसे-ऐसे काम कर रहे हैं, इस तरह कमाने के पीछे पड़ रहे हैं कि एक बार जो इनके द्वार पहुंचता है, उसके पास जैसा एक- एक जगह एक कार्टूनिस्ट ने दर्शाया है मास्क  छोड़ कुछ भी नहीं बचता। उपरोक्त कृत्य किसी भी काल में अक्षम्य है, लेकिन आपदा के इस काल में तो ऐसा करना महापाप से कम नहीं है।

आवश्यक है कि ऐसे समाज विरोधी तत्वों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई हो। एेसे निजी अस्पताल भी हैं, जो इस कठिन काल में अपनी शानदार और उचित सेवाओं से देश का मान बढ़ा रहे हैं,जनता की तकलीफ कम कर रहे हैं, लेकिन ऐसों की भी संख्या कम नहीं जो भेड़िये जैसा काम कर रहे हैं कि एक बार शिकार आगोश में आया है तो उसे खत्म कर दो। निजी अस्पताल मरीजों को ठीक  कर रहे है, लेकिन भारी भरकम बिल बनाकर उसे आर्थिक रूप से बीमार कर दे रहे हैं।

आवश्यक है इस समस्या का तत्काल इलाज किया जाए। अभी महामारी का काल है, कैसी ये निंदनीय काम ना हों इसकी खबरदारी बरती जाए और एक बार इससे फुरसत मिलने पर देश भर में अस्पतालों में विशेषकर निजी अस्पतालों में जहां फीस की कोई सीमा नहीं है और सरकारी अस्पतालों में जो अव्यवस्था का, लापरवाही का आलम दिख रहा है, इसकी समीक्षा की जाए और और इनके संचालन के, शुल्क लेने की एक देशव्यापी नीति बनाई जाए और उसे कठोरता पूर्वक लागू ही न किया जाए, बल्कि सतत नजर भी रखी जाए कि वह सही तरह से लागू हो रही है या नहीं।

फिलहाल तो यही सुनिश्चित करना काफी होगा कि समाज में जो इस समय भेड़िए घुम रहे हैं, उन पर सख्त लगाम लगे और जो भी साधन-सुविधा है वह लोगों को सहज सुलभ हो। अस्पतालों की या जिम्मेदार व्यक्तियों की लापरवाही या लोलुपता मानवता को शर्मसार ना करे ।

– हमारा महानगर

प्रकाशित तारीख : 2021-05-14 10:07:00

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