वसन्त लोहनी (काठमांडू)
मासूमियत का अर्थ बदल जाता है
जब मासूम ह्रदय से उद्गम खुशियां
जो किसी से कुछ मांग नहीं रहा है
जिसको किसी से कोई शिकायत नहीं है
पंकज की तरह
जज़्बात में ही खिला था
उसी को छीन कर जश्न मनाने वाले
मुझे निरीह बनाते हैं
मेरी निरीहता में
संपूर्ण आबरू नोच लेते हैं
श्मशान के गिद्ध की तरह
गुनाह करने के बाद
थोड़ा सा दया अगर बचा तो
मुझे गुनहगार बना कर छोड़ देते हैं
नहीं तो -
दफना देते हैं
नामोनिशान मिटा कर