वसन्त लोहनी
फेसबुक में कोई सुना रहा था भगवान के घर के बारे में
तनिक सा सुना,
लेकिन ध्यान देकर नही
पता नहीं क्यों मैं आगे नहीं गया
जब मैं छोटा था और नल खोलते थे
पहले हवा आता था
उसके बाद हवा के साथ धुलयुक्त पानी
फिर उसके बाद पीने का पानी
हम सब वही पीते थे
वैसा ही लगा मुझे
जब 'भगवान की घर' की बात आ गई
वह कह रही थी एक अजनबी को
जो उनके श्रीमान को पहुंचाने गया था
अपने श्रीमान को ही दिखाकर
हम दोनों भगवान के घर में रहते हैं
यह भगवान का घर हैं
भगवान का घर किसे कहते हैं?
मंदिर, हां मंदिर को
मंदिर जाते वक्त जो भाव उत्पन्न होती है
वही भाव लेकर वहा दोनों रहते हैं उसी घर में
जब दिल में सदा मंदिर प्रवेश का भाव रहे
तब वह घर भगवान का ही घर होगा
कोई गलत काम नहीं हो सकता वहां
मुझे अच्छा लगा यह बात सुनकर
भगवान के घर में रहने का।