वसन्त लाेहनी
आसन जमाने के लिए
उन्होंने क्या नहीं किया
ऐसे प्रवचन दिए
सब मुग्ध हो गए
ऐसे तुकबंदी में बोले
सब आश्चर्यचकित हो गए
जब चाहे वह सबको
चुटकुलों से हंसा सकते है
जब चाहे द्रवीभूत बना सकते हैं
अपूर्व क्षमतावान्
उन्होंने आसन ऐसा जमाया था
उठना नहीं चाहते
खेल खत्म होने के बाद भी
आसन में जमे रहना चाहते है
गणेश जी चले गए
नायब भी चले गए
लेकिन वाचक शिरोमणि जी
अपने पांडित्य और दिखा रहे हैं
आहिस्ता आहिस्ता ।
श्रोता उठने लगे
लेकिन पंडित जी आश्वस्त कर रहे हैं
अगले कथा और सुंदर होगा
और सबको कह रहे हैं
उन्हीं के साथ रहना है
छोटे से जगह में
कथा सुनाने वाले
पंडित ज्यादा होने लगे
हर मोहल्ला पर दिखाई दे रहे हैं
कथा श्रवण की
हर पंडित की चाहत हैं
आसन उन्हीं का बने
इसीलिए लाउडस्पीकर पर चिल्ला रहे हैं
सुबह से शाम तक
फजूल बातों से कान फट रहा है
लेकिन रोमांचित भी कर रहे हैं
अपने जादूगरी कला से
कभी हवा से
गुलाब की फूल निकालते हैं
तो कभी टोपी से
कबूतर निकालते हैं
समुंदर की छाल की तरह
उछल कूद कर रहे हैं
उपद्रव मचा रहें हैं
आहिस्ता आहिस्ता.....
श्रोता उठ रहे हैं
आहिस्ता आहिस्ता..
श्रोता बैठ रहे हैं
तनिक समझ सबको आ चुका है
उठने वाले को और बैठने वाले को
जो पंडित सुनाने वाले हैं
सबको मंत्रमुग्ध करने वाले हैं
दरअसल में पंडित हे नहीं है
जो आवाज वह निकाल रहे हैं
जिस धुन में नगमा बोल रहे हैं
सिर्फ इतना ही है-
"अधजल गगरी छलकत जाय"
इसीलिए अब वख्त आ चुका है
पूरी गगरिया ढूंढें!
Relevant to present situation.