वसन्त लोहनी (काठमांडू)
वक्त के तकाजा में बधे हुए इंसान को
बुढ़ापा के साथ दोस्ती करना पड़ता है
इसके लिए पहलें तोड़ना होगा
क्या ?
मानसिक शिकंजा को
जो खुद ने बनाया है
तभी दोस्ती बढ़ सकती हैं दूसरों से
स्वस्थ मन से ही
स्वस्थ विचार के प्रस्फुटन
तब कुछ अच्छे कर्म हो सकता है
दोस्तों के समागम मे
जो मंथन होगा
मक्खन की तरह लुफ्त भी निकलेगा
नहीं तो दुनियादारी कीं
वही झूठ और फरेबी की कुआं में
डुबकी लगाते लगाते रह जाएंगे
अगला बार जब दरवाजा खटखटाएगा
दरवाजा खोलने के योग्य नहीं रहेंगे
लपक ने की तो बात ही छोड़िए
क्यों कि
इस बार खटखटाने वाले
बुढ़ापा नहीं होगा
तो कौन होगा?
वही –
जो बुढ़वा को अनन्त यात्रा में ले जाएगा।