स्वीकारोक्ति

दीपाली

मैंने खेत इतने करीब से नहीं देखे
कि फ़स्ल का नाम बता दूं
रवि, खरीफ़, जायद
स्कूल में पढ़ा और वहीं तक रहा।

ये भी नहीं बता सकती कि
पलाश, गुलमोहर, रातरानी
एक दूजे से कितने भिन्न हैं।

देवदार, चीड़, अशोक, पीपल
वृक्षों की शृंखला में 
पत्तियों का भान भी नहीं।

मैं नहीं जानती लोक की भाषा,
गांव की बातें, उनके किस्से
महुआ, माहवार, धान, रोपाई
कभी मेरी कविता के हिस्से नहीं रहे।

प्रेम से आदि हो 
प्रेम पर तमाम हुई मैं
क्या इतना कम जाना मैंने ? 
क्या इतना कम देखा मैंने ?

प्रकाशित तारीख : 2021-04-12 06:59:00

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