वसन्त लोहनी (काठमांडू)
जिंदगी क्या है और क्या नहीं है
इसमें उलझना नहीं चाहता हूं मैं
जो मिला है खुदा की मर्जी से
उसी को बुलंदी में पहुंचाना है
संबंधों में मुझे विश्वास नहीं है
भूल भुलैया है खेलों का
रेगिस्तान की रेत की चमक से
पानी की प्यास बुझाने का
रिश्तों के मंडी में अभी
होलसेल प्राइस चलता है
कोही झांक कर नहीं देखते
रिश्ते के अंदर क्या है ?
चमकते सितारे को पकड़ने का
ख्वाब लेकर मैं चलता नहीं हूं
मैं आसमान को देखता ही नहीं
धरती को देखकर ही चलता हूं
जिंदगी लिखने का इतना ही शौक है
तो, इबारत धरती से सीखो
आसमान में कब तक उडोगे
जनाजा को तो धरती ही चाहिए