भौतिकवाद अद्ध्यात्मिकवाद का एक अभिन्न अंग है ।
ईंसवी सन् २००६ दशहरे के दिनों में कोलकाता दुर्गापुजा में सदा कि भाँती दुर्गापुजा का उत्सव मनाया जा रहा था । पश्चिम बंगाल सरकार के एक मन्त्री पुजा कि थाली लिए अपने हिन्दुत्व कि वेश - भुषा में देवि कि पुजा अर्चना करने दुर्गा पंडाल पहुँच रहे थे । वहाँ उपस्थित एक मीडियाकर्मी ने साहस बटोरकर उस मन्त्री महोदय से प्रश्न किया " महोदय आप तो कम्युनिष्ट ( साम्यवादी ) हैं । कम्युनिष्ट तो कभी भी धार्मिक कर्म - काण्डों में विश्वास नहीं करते वे नास्तिक होते हैं , और आप तो पुजा करने जा रहें हैं "।
मीडियाकर्मी के इस प्रश्न का उत्तर उन मन्त्री महोदय ने इस प्रकार दिया " पहले मैं ब्राह्मण हुँ । फिर बाद में कम्युनिष्ट "। दलित साम्यवादी सोच के सभी नेताओं के लिये यह एक आंख खुलने जैसी सच्ची उदाहरण है । एक ब्राह्मण कतै कम्युनिष्ट नहीं हो सकता । चातुर्वर्ण्य समाप्त होने से अस्पृश्यता अपने आप नष्ट हो जायेगी । केवल चातुर्वर्ण्य को नष्ट करने का प्रयास किया जाये क्योंकि अस्पृश्यता उसका हिस्सा है । जड पर प्रहार ही सुधार का सच्चा मार्ग है । प्राकृतिक रुप से कोई व्यक्ती समान नहीं पैदा हो सकता । कोई कमजोर, कोई पंगु, कोई बिमार । किन्तु फिर भी वो एक समाजिक प्राणी होने के नाते समाज का यह दायित्व होता है कि , समाज उन्हें समता बंधुत्व भातृत्व भाव सहित समाज के मुलधारा में लायें । लेकिन हकिकत कुछ और ही दिखती है ।
दिव्यांगो का पुनर्वसन करने कि बात करने वाली सरकार आज भी दलितों का शोषण कर रही है । क्या कोई व्यक्ति किसी गरीब के घर पैदा होने से दलित ( अस्पृश्य ) हो जाता है ? आज जल थल और आकाश के सभी चर अचर प्राणियों के पुनर्वसन स्वास्थ्य कि चिन्ता सरकार और विश्व समुदाय करते हैं । किन्तु मानव समुदाय कि किसी को भी कतई चिन्ता नहीं दिखती । बल्कि मनुष्य को जातपात, गोरा काला, लिङ्गिय, भाषावाद, प्रांतवाद और धार्मिक असमानता के नाम पर दमन करने कि प्रविति बडे जोरों पर दिखती है । पुरे विश्व के मनुष्य को जिसे ऋषि मनु का अंश समझकर विभेद करने कि नीति का विरोध होना चाहिये । सभी धर्म कि सुन्दरता को कायम रखने के लिये अतिवाद के गहरे सोच से बाहर आना होगा । भौतिकवाद अद्ध्यात्मिकवाद का एक अभिन्न अंग है ।
-लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।