दिल्ली पंजाब हरियाणा और यूपी के ही किसान आते थे। इन्हें किसान कहा जाता था। गोदी मीडिया ने फ़ूट डालने के लिए इन्हें पंजाब का किसान कहने लगा है। पंजाब का बता कर खालिस्तानी कहने लगा है। जब बेरोज़गारों ने 17 सितंबर को आंदोलन किया तो उसे भी कवरेज़ से ग़ायब कर दिया गया। लाखों ट्विट कराने के बाद भी बेरोजगार सुशांत सिंह राजपूत के कवरेज़ का 0.1 प्रतिशत कवेरज़ हासिल नहीं कर सके। धीरे धीरे देखते जाइये इस मीडिया को आगे करते कैसे लोकतंत्र कुचला जा रहा है। हर बात में जनता ही दोषी है बता कर यह मीडिया सरकार से सवाल नहीं करता है। सवाल होने नहीं देता है। इस एपिसोड में आप देख सकेंगे कि कैसे सरकार के भीतर बन रहे तमाम रिपोर्ट में मंडी और एम एस पी ख़त्म किए जाने की बातें खुलेआम होती रही हैं। रिपोर्ट लाँच किए गए। मंडी और एम एस पी ख़त्म करने की बात रिपोर्ट में दर्ज है।
सोच में दर्ज है। सरकार कहती है कि एम एस पी ख़त्म नहीं होती इस पर भरोसा कर लो। ज़बानी भरोसा देना चाहती है। ये भरोसा देकर प्रधानमंत्री कहे जा रहे हैं कि ये कुछ किसान हैं। इन्हें भरमा दिया गया है। सड़क पर बैठा किसान गुमराह नज़र आता है। कोरोना संकट का लाभ उठा कर ये अध्यादेश लाया गया। संसद का इंतज़ार नहीं किया गया। क्यों? अगर ये खेल समझना है तो नीति आयोग के अमिताभ कांत का 20 मई को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपा लेख देखिए। आक्रामक तरीक़े से ऐसे सुधारों की वकालत करते हैं और 5 जून को सरकार अध्यादेश लाती है। मीडिया इस क़ानून के कवरेज को ग़ायब कर देता है। सुशांत सिंह राजपूत के कवरेज को साढ़े तीन महीने मिला। किसानों के कवरेज़ को दो दिन भी नहीं। गोदी मीडिया की तो पूरी फ़ौज है। उनके संवाददाता चाहें तो खबरें खोज कर ला सकते हैं कि कहाँ खुले बाज़ार में किसान मालामाल हो रहा है। बिहार में कौन किसान है जो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान बेचकर कमा रहा है।
क्यों नहीं गोदी मीडिया ये काम करता है ताकि किसान गुमराह न हों। सच तो ये है कि ऐसी कहानी मिलेगी भी नहीं। अपवाद स्वरूप इक्का दुक्का किसानों के अनुभवों को दिखा कर सब कुछ अच्छा बताने वाले खेती किसानी के व्यापक संकट को भूल जाते हैं। फिर भी गोदी मीडिया किसानों को खालिस्तानी और आतंकवादी बताने की जगह मोदी सरकार कि कृषि नीतियों के फ़ायदे क्यों नहीं दिखाता है? ज़ाहिर है जब इस देश में तरह तरह के बहाने से हिन्दू मुस्लिम राजनीति को हवा देकर काम हो जा रहा है तो फिर ज़मीन पर जाकर क्यों काम करना। गोदी मीडिया ने लोकतंत्र की हत्या कर दी है। उसे विरोध करने वाला हर तबका आतंकवादी दिखता है। फिर यही गोदी मीडिया मोदी सरकार की तारीफ़ भी करेगा कि मोदी ने आतंकवाद ख़त्म कर दिया है।