ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि भारत को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) तुरंत रद्द करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत की शरण संबंधी या शरणार्थी नीति धर्म अथवा किसी भी आधार पर भेदभाव करने वाली न हो तथा अंतरराष्ट्रीय कानून के मानकों के अनुरूप हो.
मानवाधिकार संस्था के दक्षिण एशिया क्षेत्र की निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने 82 पन्नों की रिपोर्ट ‘शूट द ट्रेटर्स: डिस्क्रिमिनेशन अगेंस्ट मुस्लिम्स अंडर इंडियाज न्यू सिटिजनशिप पॉलिसी’ जारी करते हुए कहा कि नया संशोधित नागरिकता कानून भारत के अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन करता है, जिनके मुताबिक नस्ल, रंग, वंश, राष्ट्र आदि के आधार पर नागरिकता देने से इनकार नहीं किया जा सकता.
रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि सरकार की नीतियों ने भीड़ हिंसा और पुलिस की निष्क्रियता के लिए दरवाजे खोले, जिससे देशभर में मुस्लिमों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के बीच डर पैदा हुआ है.
समाचार एजेंसी पी़टीआई के मुताबिक न्यूयॉर्क स्थित इस संगठन ने आगे कहा, ‘भारत ने नागरिकता (संशोधन) कानून को नागरिता सत्यापन प्रक्रियाओं से अलग करने की कोशिश तो की, लेकिन भाजपा नेताओं के विरोधाभासी, भेदभावपूर्ण और नफ़रत भरे दावों के चलते अल्पसंख्यक समुदायों को आश्वस्त करने में नाकाम रहा.’
सरकार को तुरंत उन नीतियों को उलट देना चाहिए जो भारत के अंतरराष्ट्रीय कानूनी दायित्वों का उल्लंघन करती हैं. उसे कथित पुलिस ज़्यादतियों की जांच करनी चाहिए और बोलने और एकत्रित होने की आज़ादी की रक्षा करनी चाहिए.