- वसन्त लाेहनी
सुबहके मुस्कुराहट में
पूर्वाहुती चेतना बाटती हैं
अनगिनत उषाके स्वरुप मे
लेकिन -
फैले हुवे चेतना पुंज से सब डरते हैं
वह जो रात दिन जन-चेतना बढानेके लिए
जप करते रहते हैं
क्यो?
जप करना एक रस्म हैं
अपने अपने धंधाका
रश्मी तो नही
तो, डरते हैं बढती हुई चेतना से
तब न इन्द्र ने उषाका रथको दो टुकडे करदिया
जब उषा चेतना फैलारहिथी
अपने मुस्कुराहट बाटकर