शहर में मज़दूर जैसा दर-ब-दर कोई नहीं, जिस ने सब के घर बनाए उस का घर कोई नहीं...जिन रास्तों पर चलकर ये लोग अपनी मंजिल खोज रहे है, वो रास्ते भी इनके खून-पसीने से ही बने हैं। अफसोस तो इस बात का है कि इनके लिए उन सड़कों पर कोई वाहन नहीं दौड़ रहा। कुछ साल पहले एक तस्वीर आपने देखी होगी।
जिसमें लाल टी-शर्ट पहने एक बच्चे की लाश समुद्र में तैर रही थी। ये तस्वीर तुर्की के एक बच्चे की थी। इस्लामिक स्टेट के कहर से बचने के लिए ये लोग नावों पर ही सवार होकर दूसरे देशों की ओर जान बचाकर भाग रहे थे। दो नावों में कुल 12 शरणार्थी थे। दोनों नावें डूब गईं थीं। जिंदगी की तलाश में निकले सभी लोगों की मौत हो गई।
इस तस्वीर ने बड़े-बड़े देशों को नीतियां बदलने के लिए मजबूर कर दिया था। आज एक बच्चे और मां की तस्वीर हिंदुस्तान से आई है। जहां एक बच्चा 80 किलोमीटर का सफर तय कर मां के पैरों पर ही लेट गया और शायद अपनी मां से यही कह रहा होगा कि मां...बस करो अब मैं आगे नहीं चल पाऊंगा...