१९६२ की लड़ाई के बाद से ही चीन भारतीय सैनिकों से खौफ खाता है। क्यों? तो पहाड़ों में लड़ने की जो काबिलियत भारतीय सेना में है वो उसमें नहीं। वो जानता है कि इन इलाकों में भारतीय सेना की रीढ़ की हड्डी हैं तो नेपाली गोरखा। इसलिए चीन किसी भी तरह भारतीय सेना में नेपाल के गोरखाओं की भर्ती बंद करना चाहता है। हालांकि, ऐसा करते वक्त वो यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहता है कि भारतीय सेना को कमजोर करने के चक्कर में कहीं नेपाल की सेना जरूरत से ज्यादा मजबूत न हो जाए। लिहाजा, चीन दूर की कौड़ी खोजकर लाया है। नेपाली आर्मी को भी अंदर से खोखला करने की नायाब तरकीब। इन दिनों नेपाल में चीन की उसी तरकीब पर काम चल रहा है। जिसे अंजाम देने में जुटी हैं, नेपाल में चीन की रसूखदार राजदूत होउ यांग्की।
हिंदुस्थान के प्रति आक्रामक होने के लिए चीन लगातार नेपाल और पाकिस्तान को उकसा रहा है। उसी उकसावे का नतीजा है कि अब पाकिस्तान भी नया नक्शा लेकर आ गया है। वो संपूर्ण कश्मीर, लद्दाख और जूनागढ़ सह सर-क्रीक तक अपना दावा ठोंक रहा है। दो महीनों के भीतर हिंदुस्थान के दो पड़ोसी देश बिना कारण अचानक अपने नक्शे में एकतरफा बदलाव कर दें तो जाहिर है कि दोनों की इन ‘नाजायज’ हरकतों का ‘बाप’ एक ही होगा। खैर, चिंता का विषय ये नहीं है, बल्कि चिंता का विषय तो ये है कि चीन एक रणनीति के तहत नेपाली सेना को भी गैर मिलिट्री गतिविधियों में शामिल करना चाहता है। जो नेपाल के साथ-साथ हमारे लिए भी गंभीर मुद्दा है।
नेपाल में चीन की राजदूत होउ यांग्की ने प्रधानमंत्री के.पी. ओली और सत्ताधारी एनसीपी के सह अध्यक्ष प्रचंड के साथ यदि घनिष्ठता रखी है तो नेपाल के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ पूर्णचंद्र थापा को भी नजरअंदाज नहीं किया है। यांग्की के उनसे भी उतने ही अच्छे संबंध हैं। प्रधानमंत्री आवास व दफ्तर से लेकर आर्मी हेडक्वॉर्टर तक उनकी सीधी पहुंच है। इसीलिए थापा यदि किसी कार्यक्रम में अतिथि विशेष भी हों तब भी वे यांग्की को रिसीव करने गेट पर पहुंच ही जाते हैं। तभी तो यांग्की नेपाल में सबसे पावरफुल विदेशी राजदूत कहलाती हैं। वही यांग्की इन दिनों नेपाली सेना को ‘बैटल ऑफ बिजनेस’ का पावरफुल पाठ पढ़ा रही हैं।
‘मोटे मुनाफे में’ मुरीद
दरअसल, नेपाली सेना संसाधनों की कमी से जूझ रही है और वो लंबे वक्त से इस पर काबू पाने के लिए जोर भी लगा रही थी। परंतु इस काम में तेजी आई तो पाकिस्तान से तीन सालाना अनुभव लेकर आर्इं चीनी राजदूत होउ यांग्की के नेपाल पहुंचते ही। उन्होंने नेपाल में सत्ता और सेना से बराबर का तालमेल बनाया और फिर नेपाली सेना को पाकिस्तानी तर्ज पर मुनाफे का मंत्र दे दिया। यांग्की के आते ही नेपाली सेना ने अपने वेलफेयर फंड को विभिन्न बिजनेस में ‘बतौर प्रमोटर’ निवेश करने की कानूनी सलाह मांगी और फिर ‘द नेशनल डिफेंस फोर्स’ ने नेपाली आर्मी एक्ट में बदलाव के लिए एक ड्राफ्ट बिल भी पेश कर दिया। जिसे फाइनल करने में चीनी विदेश मंत्रालय में एशियाई मामलों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल चुकी यांग्की की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है। अब तक नेपाली सेना मुख्य रूप से सड़कें व एक्सप्रेस-वे बनाने के अलावा गैस स्टेशन, स्कूल, मेडिकल कॉलेज और पानी की बोतलें ही बेचती है, लेकिन अब वो यांग्की की सलाह पर कुछ बड़ा करना चाहती है। वैसा ही कुछ जैसा पाकिस्तानी सेना करती है। जो बैंकिंग, फूड, रिटेल, सीमेंट, रियल स्टेट, हाउजिंग कंस्ट्रक्शन, इंश्योरेंस और निजी सिक्योरिटी सर्विसेस समेत ५० से ज्यादा कारोबारी और हाउजिंग प्रॉपर्टीज की मालिक है। २०१३ तक उसकी कारोबार वैल्यू २० बिलियन डॉलर के करीब थी, जोकि २०१६ में बढ़कर लगभग १०० बिलियन डॉलर हो चुकी थी। यह सब उसके रक्षा बजट से इतर था। इसी मोह में नेपाल की सेना भी अपने ४५ अरब रुपयों के वेलफेयर फंड का निवेश कर मोटा मुनाफा कमाने के लिए सरकार में पूरा जोर लगाए हुए है। उसे उम्मीद है कि उसके ड्राफ्ट बिल को संसद से स्वीकृति मिलने से पहले ही सरकार अपनी सहमति दे देगी और इस उम्मीद के पीछे बड़ी वजह है तो चीनी विदेश नीति के रणनीतिकारों से ताल बैठाकर काम करनेवाली होउ यांग्की की नेपाल डिप्लोमेसी।