पटना से आरा के रास्ते सासाराम जाते हुए बाजारों और चौराहों पर कई जगह चुनावी पोस्टर लगे दिखाई देते हैं। भाजपा के पोस्टरों में पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की उपलब्धियां हैं तो जदयू के पोस्टर में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। शराब बंदी, 15 साल के लालूराज और सुशासन की बातों का भी इसमें जिक्र है। राजद के पोस्टर में तेजस्वी यादव की बड़ी तस्वीर लगी है, जिसमें बीपीएल मुक्त बिहार का वादा किया गया है। इन पोस्टरों को ही अगर ध्यान से देखें तो बिहार के इस चुनाव के मुद्दे और चेहरे साफ हो जाते हैं।
हर बार की तरह बिहार में इस बार भी कास्ट फैक्टर का बड़ा रोल होगा। पार्टियों ने कास्ट के आधार पर सियासी बिसात बिछानी शुरू कर दी है। अभी वर्चुअल चुनाव प्रचार शुरू हो गया है। पार्टियां जनता तक पहुंचने और मतदाताओं को समझाने में जुट गईं हैं।
कोरोना सबसे बड़ा मुद्दा है
अभी बिहार की राजनीति कोरोना के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। एनडीए जहां कोरोना के दौरान बेहतर व्यवस्था, क्वारैंटाइन सेंटर्स, गरीबों को अनाज देने की बात प्रमुखता से रख रही है। वहीं, राजद और अन्य पार्टियां समय पर सही कदम न उठाने और कोरोना बढ़ने के लिए सरकार की लापरवाही को मुद्दा बना रही हैं। इन सब मुद्दों के बीच वोटों के धुव्रीकरण में अहम भूमिका निभाने वाला सांप्रदायिकता का कार्ड फिलहाल यहां हाशिए पर है।