लोकप्रिय चुनावी राजनीति में कोई भी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति देश की जनभावना की उपेक्षा नहीं करता है. जम्मू-कश्मीर के विभाजन के बाद भारत ने पिछले साल नवंबर में नया नक्शा जारी किया तो नेपाल के लोगों ने उस नक्शे में कालापानी इलाक़े को देख विरोध जताया.
नेपाल के लोगों ने अपनी सरकार के ख़िलाफ़ भी ग़ुस्सा ज़ाहिर किया. पूरे विवाद में नेपाल की सरकार को सामने आना पड़ा और भारत के नक्शे पर एतराज जताया. तब से ही नेपाल की सरकार पर दबाव था कि वो भी कुछ करे.
जब लिपुलेख में भारत ने चीन तक जाने वाली सड़क का निर्माण किया तो नेपाल ने भी कुछ दिनों बाद नया नक्शा जारी कर दिया और जिन क्षेत्रों पर दावा करता उन सबको अपने मानचित्र में शामिल कर लिया. भारत ने इस पर आपत्ति जताई और दोनों देशों के बीच विवाद अब भी जारी है.
नेपाल के प्रधानमंत्री ओली के बारे में कहा जाता है कि वो विदेशी संबंधों में अपने दो बड़े पड़ोसी भारत और चीन के बीच संतुलन बनाकर रखना चाहते हैं.
ओली कभी भारत समर्थक कहे जाते थे. ऐसा माना जाता है कि नेपाल की राजनीति में उनका रुख़ भारत के पक्ष में कभी हुआ करता था.