भगवान श्रीराम अपने 14 वर्षों के वनवास के दौरान चित्रकूट में थे। भगवान राम एवं माता सीता कुटिया के बाहर बैठे हुए थे। लक्ष्मणजी उनके चरणों में बैठे थे, तभी श्रीराम ने कहा कि लक्ष्मण मेरे और सीता के बीच एक झगड़ा हो गया है, इसलिए तुम न्याय करो। लक्ष्मण जी को कुछ अटपटा लगा लेकिन कुछ देर बाद वह मान गए।
श्रीराम ने कहा कि मेरा कहना है कि मेरे चरण सुंदर हैं जबकि सीता कहती हैं उनके चरण सुंदर हैं। अब तुम ही निर्णय करो कि किसके चरण सुंदर हैं। लक्ष्मणजी बोले, आप मुझे इस धर्म संकट में मत डालिए। इस पर श्रीराम ने समझाया कि तुम बैरागी हो, निर्भय होकर कहो कि किसके चरण सुंदर हैं। राम के चरणों को दिखाते हुए लक्ष्मणजी बोले कि माता, इन चरणों से आपके चरण सुंदर हैं। इतना कहते हुए लक्ष्मण जी चुप हो गए और माता सीता खुश। इस पर लक्ष्मण जी बोले, माता इस बात पर आप अधिक खुश मत होना, क्योंकि भगवान राम के चरण हैं तभी आपके चरणों की कीमत है।
इनके चरण न हों तो आपके चरण सुंदर नहीं लग सकते। लक्ष्मणजी की बात सुनकर अब श्रीराम खुश हो गए। लक्ष्मण जी फिर बोले कि आप दोनों को खुश होने की जरूरत नहीं। आप दोनों के चरणों के अलावा भी एक चरण हैं जिसके कारण ही आपके चरणों की पूजा होती है यानी आचरण। आचरण की कोई कीमत नहीं। महाराज, आपके चरण सुंदर हैं तो उसका कारण है आपका महान आचरण। आचरण अच्छा हो तो तन-मन दोनों सुंदर होते हैं और वह संसार में अमिट छाप छोड़ जाता है। उन्होंने कहा , मन में प्रेम, त्याग, धर्म और माफ करने की भावना हो उस सुंदरता के आगे कोई भी नहीं टिक सकता।