इस घड़ी
हमारे हाथ होती यदि
किसी परी की छड़ी
घुमा के व्वो देता
पिछवाड़े तुम्हारे
कि सारी मक्कारी तुम्हारी
रह जाती धरी की धरी!
पर, क्या कीजे
पन्नों में कैद परी भी इस घड़ी
रोये जा रही है धार धार
और ये जो दिख रही है इन दिनों
नदियों की निर्मलता आर पार
यह उसी की है
आंसुओं की लड़ी