आनंद !

- वसन्त लाेहनी

क्या है आनंद? 

खिले हुए बागों से
खिलखिलाहट आ रही थी
पानी में भीगे थे वह
मैंने पूछा - क्या है आनंद ?
उन्होने मुझसे पुछे - 
क्यों चुराने आए आप?
मैंने हैरानी मे कहा - क्या चुरा सकता हूं मैं ? 
दोनों एक साथ बोले - आप चुरा रहे हैं
मैंने पूछा,  क्या ? 
वह बोले - आप आनंद की बात कर रहे हैं
हम परमानन्द थे, भीगे बदन से
वह आप ने चुरा लिया 

बस्ती मैं पहुंचा
भीगे हुए लोग से पूछा मैंने
भीगने में  मजा आ रहा है ?
बालों से गिरते पानी को
आंखों से हटाया उन्होने 
बड़े-बड़े आंखों दिखाई दिया 
लेकिन रिक्तता से भरा था
वह आँखे मेरी मुंह मे गाडकर
उन्होंने आश्चर्य हो कर मुझसे पूछा -
मजा, क्या मजा? 
घर के अंदर भी तो भीगना ही है
तो हम बाहर ही भीग रहे हैं
आपको क्या तकलीफ़ है? 

जहां नोटों की वर्षा हो रहा था
वहां पहुंचे और पूछा - क्या है?
वह बोले - अरे दूर रहो, यह मेरा है
लेकिन यह बरसात कैसे?
फिर बोले -
अरे भाई मैं राजनीतिज्ञ हूं
जनता मेरी 'र मटेरियल' है
उनका बदौलत  है यह सब
उनको सपना बेचता हूं
और बदले में उनसे लूटता हूं
यही मेरा व्यापार है
नोटों की बरसात है

आश्रम में पहुंचा 
जटाधारी मुनि ध्यान में थे
इंतजार करते करते वक्त गुजर रहा था
धीमी आवाज़ सुनाई दी
अंदर देखा तो दबी आवाज़ में लड़की रो रही थी
और अंदर तो दर्जनों दासी लड़कियाँ थी 
में देख ना सका और मूड गया
सामने एक बंदूक मेरी तरफ
वह व्यक्ति दागने वाला था
आँखों से ज्वाला निकल रहा था
वही आँखे जो ध्यान मग्न बन्द देखा था मैने

बाग की आनंद हो या बस्ती की
आश्रम की हो या मधुशाला की
राजनीति की हो या द्रव्य नीति की
यह क्या तरलता है जो
झूम उठाती है ?

सबसे बड़ा आनंद
सिर्फ एक रहा है
वह आनंद में बांटना नहीं सकता
खुदा से भी नहीं 
अकेला ही लेना चाहता हूं
सिर्फ अकेला 
वह है - 
अकेला रहने का आनंद
राहगीर बनकर अकेला चलने से
जो आनंद मुझे मिला है
वही सबकुछ हैं 
तभी तो मुझे डर लगता
वह आनंद कोई मुझसे छीन ना ले।



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प्रकाशित तारीख : 2021-02-12 08:14:00

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