दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत का रेको दिक जिला अपनी खनिज संपदा के लिए प्रसिद्ध है. इनमें सोना और तांबा शामिल है. प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार इस खनिज संपदा को सामरिक रूप से महत्वपूर्ण राष्ट्रीय संपत्ति मानती है. हालांकि देश के लिए समृद्धि लाने की जगह संभव है कि रेको दिक खनन परियोजना की देश को बड़ी कीमत चुकाने पड़े.
पाकिस्तान सरकार ने यहां टेथ्यान कॉपर कॉर्प नामक कंपनी को लीज पर खनन की इजाजत दी थी. कंपनी में ऑस्ट्रेलिया की कंपनी बैरिक गोल्ड कॉर्प और चिली की कंपनी एन्तोफगास्तो पीएलसी बराबर की साझेदार हैं. लेकिन बाद में सरकार ने यह लीज रद्द कर दी, जिसके बाद टेथ्यान ने विश्व बैंक के निवेश झगड़ों के निपटारे के अंतरराष्ट्रीय केंद्र में शिकायत कर दी. केंद्र ने पाकिस्तान सरकार को दोषी ठहराते हुए उस पर जुर्माना लगा दिया, जिसके खिलाफ पाकिस्तान ने अपील कर दी. केंद्र अभी इस अपील पर विचार कर रहा है.
इस बीच, बलूचिस्तान सरकार ने उसी खदान के विकास के लिए अपनी ही एक कंपनी बना ली है. पाकिस्तान और टेथ्यान दोनों ने निपटारे जैसे समाधान के दूसरे रास्तों पर भी चर्चा करने की सम्मति दिखाई है, लेकिन अभी यह साफ नहीं हुआ कि उनके बीच किसी समझौते पर बातचीत शुरू हुई है या नहीं. पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि दोनों कंपनियों के बीच सीधा संपर्क नहीं हुआ है और निपटारे की कोई विशेष योजना प्रस्तावित नहीं की गई है.
दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान का बलूचिस्तान प्रांत अपनी खनिज संपदा के लिए प्रसिद्ध है.
कंपनी की वेबसाइट पर एक बयान में लिखा हुआ है, "टीसीसी ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए मध्यस्थता कार्यवाही की शुरुआत की है, लेकिन इसके बावजूद कंपनी को उम्मीद है कि बातचीत से मामले का कोई समाधान जरूर होगा." हाल में जब टेथ्यान के अधिकारियों से इसके विषय में पूछा गया तो उन्होंने बताया की मुद्दे पर कोई ताजा जानकारी नहीं है.
पकिस्तान के अटर्नी जनरल के दफ्तर में एक अधिकारी ने बताया कि जब तक जुर्माने पर अंतिम नतीजा नहीं आ जाता, तब तक टीसीसी के साथ अदालत के बाहर मामले का निपटारा संभव है. अंतिम नतीजा शायद अगले साल से पहले ना आए. यह मसला खान के बैक चैनल कूटनीति का इस्तेमाल करने और दूसरे विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने की क्षमता की परीक्षा ले रहा है.
टीसीसी की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार रेको दिक खनन परियोजना का उद्देश्य 330 करोड़ डॉलर की लागत में एक विश्व स्तरीय तांबे और सोने की ओपन पिट खदान को विकसित करना और उसे चलाना था. टीसीसी का कहना है कि इसके लिए कंपनी ने बलूचिस्तान की स्थायी सरकार के साथ 1998 में समझौता किया था. एक विस्तृत व्यावहारिकता अध्ययन के बाद कंपनी की स्थानीय सब्सिडरी ने खनन की लीज के लिए 2011 में आवेदन किया.
लगभग 600 करोड़ का यह जुर्माना पाकिस्तान की जीडीपी के दो प्रतिशत के बराबर है और पाकिस्तान के लिए हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मंजूर हुए एक बेलआउट पैकेज के भी लगभग बराबर है.
बलूचिस्तान सरकार द्वारा आवेदन के ठुकरा देने से नवंबर 2011 में परियोजना रुक गई. इस्लामाबाद और बलूचिस्तान दोनों ही जगह अधिकारियों का कहना है कि लीज इसलिए रद्द की गई क्योंकि उसे एक गैर-पारदर्शी तरीके से हथ्याया गया था और उसके तहत कंपनी को कई रियायातें दी जा रही थीं. इससे सरकारी नियमों का उल्लंघन हो रहा था और राष्ट्रीय हित की उपेक्षा हो रही थी. लेकिन टीसीसी तब तक रेको दिक में 22 करोड़ डॉलर का निवेश कर चुकी थी. कंपनी ने विश्व बैंक के ट्रिब्यूनल से 2012 में मदद मांगी और ट्रिब्यूनल ने 2017 में पाकिस्तान के खिलाफ फैसला सुनाया.
लगभग 600 करोड़ का यह जुर्माना पाकिस्तान की जीडीपी के दो प्रतिशत के बराबर है और पाकिस्तान के लिए हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मंजूर हुए एक बेलआउट पैकेज के भी लगभग बराबर है. अर्थशास्त्री जेफरी साक्स ने इसे पाकिस्तान को "लूटने" जैसा बताया. कई दूसरे विशेषज्ञों ने भी इतने बड़े जुर्माने के पीछे के तर्क पर सवाल उठाए हैं.
सीके/आईबी (एपी)