चीन की सैन्य आक्रामकता के खिलाफ भारत को अमेरिकी संसद की दोनों पार्टियों के सदस्यों का जबरदस्त समर्थन मिला है। पिछले कुछ हफ्तों में प्रतिनिधि सभा और सीनेट दोनों के कई सांसदों ने भारतीय क्षेत्रों को हथियाने की चीन की कोशिशों के खिलाफ भारत के सख्त रुख की तारीफ की है।
बता दें कि भारत और चीन की सेनाओं के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के कई इलाकों में पांच मई के बाद से गतिरोध चल रहा है। हालात तब बिगड़ गए जब 15 जून को गलवान घाटी में झड़पों में भारतीय सेना के 20 सैनिक शहीद हो गए।
डेमोक्रेटिक पार्टी के वरिष्ठ सांसदों में से एक फ्रैंक पैलोन ने प्रतिनिधि सभा में भारत के लद्दाख क्षेत्र में चीन की आक्रामकता की निंदा करते हुए कहा, 'मैं चीन से अपनी सैन्य आक्रामकता खत्म करने की अपील करता हूं। यह संघर्ष शांतिपूर्ण माध्यमों से ही हल होना चाहिए।' भारत-अमेरिका संबंधों का मजबूती से समर्थन करने वाले पैलोन 1988 से अमेरिकी संसद के सदस्य हैं।
ऐसे समय जब वॉशिंगटन डीसी में राजनीतिक विभाजन बढ़ गया है तब दोनों पार्टियों के प्रभावशाली सांसद चीन के खिलाफ भारत के रुख का समर्थन कर रहे हैं। पैलोन ने दावा किया, 'झड़पों से कुछ महीने पहले चीन की सेना ने कथित तौर पर सीमा पर 5,000 सैनिकों का जमावड़ा किया। इसका सीधा मतलब है कि वह आक्रामकता से सीमा का पुन: निर्धारण करना चाहता है।
कोरोना वायरस दुनियाभर में फैलाने के बाद से पूरी दुनिया के देश चीन के खिलाफ हैं। ऐसे में उनकी ओर से सीमा पर जबरन कब्जा करने की घटना से छवि को और धक्का लगा है। इस मामले में भारत ने अपना रूख स्पष्ट कर दिया, साथ ही चीन के कारनामों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया जिसकी वजह से चीन की किरकिरी हुई है।
चीन के खिलाफ भारत को समर्थन ट्वीट के जरिए, जन भाषणों, सदन के पटल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका में भारत के राजदूत तरणजीत सिंह संधू को पत्र लिखकर किया गया। कई सांसदों ने चीन के खिलाफ अपना आक्रोश जताने के लिए संधू को फोन भी किया।