नेपाल ने अपना नया राजनीतिक नक्शा जारी कर भारत के साथ वर्षों से जारी बेहतर संबंधों को खराब करने का काम किया है। इसकी वजह इस नक्शे में लिम्पियाधुरा कालापानी और लिपुलेख को नेपाल की सीमा का हिस्सा दिखाया जाना है। ये सरकार की तरफ से जारी किया गया है इसलिए ही इसने कई सवालों को भी जन्म दे दिया है। इसमें सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर नेपाल ने इस तरह की कार्रवाई क्यों की है। क्या इसके पीछे चीन की कोई साजिश या दिमाग काम कर रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो इस पीछे कहीं न कहीं ड्रेगन ही है, जो नेपाल से ये सबकुछ करवा रहा है।
आपको यहां पर ये भी बता दें कि नेपाल की तरफ से ये नक्शा भारत के उस फैसले के दस दिन बाद सामने आया है जिसमें भारत लिपुलेख में सड़क का निर्माण किया था। यही रास्ता तिब्बत से होता हुआ मानसरोवर तक जाता है। इस सड़क का नेपाल ने विरोध भी किया था। इसको लेकर नेपाल के विरोध को देखते हुए दोनों देशों ने विदेश सचिव स्तर की वार्ता करने पर रजामंदी जाहिर की है। किंग्स कॉलेज के प्रोफेसर हर्ष वी पंत की राय में नेपाल को भरोसा देना होगा कि हम उनकी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हैं। वे ये भी मानते हैं कि कालापानी नदी का किनारे का इलाका हमेशा भारत के पास रहा है। यहां पर भारत ने किसी सहमति को नही तोड़ा है।
नेपाल के इस कदम के पीछे चीन का हाथ होने की सबसे बड़ी वजह तो यही है कि चीन काफी समय से नेपाल को अपने शिकंजे में करने का प्रयास कर रहा है। वह भारत केखिलाफ भड़काकर उसको अपने साथ मिलाना चाहता है। इसकी कवायद उसने वर्ष 2016-17 में उसी वक्त शुरू कर दी थी जब नेपाल में प्रचंड सरकार बनी थी। प्रचंड सरकार चीन समर्थक थी। इसके बाद से ही नेपाल का रुझान चीन की तरफ बढ़ा था। इसके बाद नेपाल पर अपना शिकंजा कसने के लिए उसने नेपाल को आर्थिक मदद भी दी थी।