बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेपाल दौरे पर हैं. बतौर प्रधानमंत्री अपने आठ साल के कार्यकाल में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाँचवी बार नेपाल दौरे पर हैं.
इससे पहले साल 2014 में दो बार और साल 2018 में दो बार वो नेपाल गए थे.
तब 17 साल बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री पड़ोसी देश नेपाल की यात्रा पर गया था.
साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, उस समारोह में उन्होंने सार्क देशों के प्रमुखों को न्योता दिया था.
पीएम मोदी के इस क़दम को नेबरहुड फर्स्ट नीति के तहत काफ़ी सराहा गया था.
ऐसे में सवाल उठता है कि पीएम मोदी इतनी जल्दी जल्दी नेपाल आख़िर क्यों जा रहे हैं? क्या उनके नेपाल दौरे के कुछ विशेष मायने हैं?
बीबीसी से बातचीत में दक्षिण एशिया मामलों के जानकार प्रोफ़ेसर एसडी मुनि कहते हैं, " साल 2014 में पीएम मोदी ने 'नेबरहुड फर्स्ट' की पॉलिसी अपनाई थी. इस नीति के तहत जिन पड़ोसी देशों के साथ भारत सरकार ने लंबे समय तक कूटनीतिक स्तर पर इंगेज नहीं किया था, उस गैप को पूरा करना उद्देश्य था. इस सिलसिले में मोदी नेपाल भी गए, श्रीलंका भी गए और दूसरे पड़ोसी मुल्क भी गए. उसके बाद दूसरी बार वो सार्क सम्मेलन में हिस्सा लेने नेपाल गए. दोनों देशों की साझी संस्कृति और सभ्यता है. इस वजह से भी प्रधानमंत्री मोदी नेपाल दौरे पर जाते रहे हैं."
"लेकिन साल 2018 के अगस्त महीने के बाद इस बार लुंबिनी की यात्रा पहली यात्रा है. यानी दूसरे कार्यकाल के मुकाबले पहले कार्यकाल में मोदी की नेपाल यात्राएं ज़्यादा जल्दी हो रही थी. इसके पीछे की एक वजह दोनों देशों के बीच हाल में हुए सीमा विवाद इसके पीछे एक बड़ी वजह है."
एक तथ्य ये भी है कि दूसरे कार्यकाल में लगभग दो साल तक कोरोना महामारी की वजह से पीएम मोदी ने विदेश यात्राएं की ही नहीं.