कोरोना संकट के बीच नेपाल और चीन ने अचानक क्यों तरेरी आंंखें?

राजेश बादल 

एक सप्ताह से नेपाल के गाल फूले हुए हैं। लिपुलेख और कालापानी पर वह हिन्दुस्तान से दो-दो हाथ करना चाहता है। चंद रोज़ पहले वह कोरोना दवा और अन्य चिकित्सा सामग्री के लिए चीन का ऑर्डर निरस्त करता है ,चीनी कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करता है और भारत को हाईड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन सप्लाई के लिए आभार प्रकट करता है तो दूसरी ओर लिपुलेख तक सड़क निर्माण और कालापानी से क़ब्ज़ा हटाने के लिए भारत को चेतावनी जारी करता है। भारतीय राजदूत को तलब करता है और काठमांडू में भारत विरोधी प्रदर्शन होते हैं।

 
दूसरी घटना सिक्किम से सटी चीनी सीमा पर होती है। दोनों मुल्क़ों के सैनिक आपस में भिड़ जाते हैं। घायल भी होते हैं।फिर चीनी हेलीकॉप्टर सीमा पार पूंंछ उठाए मंंडराते हैं और गुर्रा कर लौट जाते हैं। सीमा पर यह झड़प बड़े दिनों के बाद हुई है। ज़ाहिर है कुछ ऐसा हुआ है ,जो संसार के इस सबसे बड़े राष्ट्र को रास नहीं आ रहा है।
भारत में कूटनीतिक जानकार यह मान रहे हैं कि चीन कोरोना के मामले में अपनी नाक़ामी उजाग़र होने से बौखलाया हुआ है और भारत चीन छोड़ने वाली कंपनियों को आकर्षित करने का प्रयास कर रहा है इसलिए वह ऐसी हरक़त पर उतर आया है। लेकिन परदे के पीछे की कहानी कुछ और ही कहती है।

दरअसल, हिन्दुस्तान ने कुछ रोज़ पहले गिलगित-बाल्टिस्तान में चुनाव कराने के पाकिस्तानी सुप्रीमकोर्ट का विरोध किया है और पाकिस्तान को इलाक़ा खाली करने का अल्टीमेटम दिया है। सारी जड़ इसके पीछे हैंं। भारत ने गिलगित-बाल्टिस्तान का मौसम जारी करना शुरू कर दिया है। इससे पाकिस्तान घबराया हुआ है।

कम लोग यह जानते होंगे कि पाकिस्तान और चीन के बीच एक रक्षा संधि भी है। इस संधि के मुताबिक़ पाकिस्तान की किसी भी देश से जंग की स्थिति में चीन उसे अपने ऊपर आक्रमण मानेगा और पाकिस्तान को समर्थन देगा। पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले इलाक़े को खाली करने के भारतीय नोटिस से चीन का नाराज़ होना स्वाभाविक है क्योंकि पाक अधिकृत कश्मीर की लूट का एक साझीदार वह भी है। पाक अधिकृत कश्मीर की शक्सगाम घाटी पाकिस्तान ने चीन को 1963 में एक समझौते के तहत उपहार में दे दी थी। अगर चीन भारत के रवैए का समर्थन करता है तो उसे भी आने वाले दिनों में यह इलाक़ा खाली करना पड़ सकता है ,जो चीन की फ़ितरत में नहीं है।

प्रकाशित तारीख : 2020-05-14 08:47:07

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