नेपाल उत्तराखंड के कालापानी और लिपुलेख समेत कई हिस्सों पर अपना दावा पेश करता रहा है. भारत ने पिछले सप्ताह लिपुलेख में कैलाश मानसरोवर रोड लिंक का उद्घाटन किया तो नेपाल ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराई. नेपाल ने कहा कि वह सीमा विवाद पर भारत के साथ वार्ता के लिए कोरोना वायरस संकट के खत्म होने का भी इंतजार नहीं करेगा. हालांकि, नेपाल इन इलाकों पर दावा पेश करने के लिए जिन दस्तावेज को आधार बनाता है, वही उसके पास से गायब हैं.
नेपाल 1816 की सुगौली संधि के आधार पर ही कालापानी, लिपुलेख जैसे इलाकों पर अपना दावा पेश करता है, हालांकि वह इस अहम दस्तावेज की मूल प्रति खो चुका है. इसके अलावा, नेपाल के पास 1950 की शांति-मैत्री संधि की मूल प्रति भी मौजूद नहीं है. ये दोनों ही संधियां नेपाल के इतिहास और उसकी विदेश नीति का अहम हिस्सा हैं. नेपाल की इस लापरवाही से भारत का पक्ष और मजबूत होगा.
मंगलवार को नेपाल की संसद में कांग्रेस के सांसद नारायण खडका ने संसद में दोनों अहम दस्तावेजों के गायब होने का मामला उठाया और सरकार से उनका पता लगाने की अपील की. नेपाली सांसद ने कहा, इतने ऐतिहासिक अहमियत के दस्तावेजों के खो जाने का मामला बेहद गंभीर है और इसकी जांच की जानी चाहिए.