भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रिमोट से इस रास्ते का उद्घाटन किया। इसके बाद नेपाल में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। नेपाल सरकार ने इस पर सख्त ऐतराज जताते हुए कहा लिपुलेख पर फिर अपना दावा किया है। दूसरी ओर भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसे सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि सारा काम भारतीय सीमा के भीतर हुआ है। यह इलाका उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा है। हालांकि नेपाल इसका विरोध करता रहा है।
भारतीय चौकियों तक पहुंचना अब बेहद आसाना हो जाएगा। 17000 फुट की ऊंचाई पर लिपुलेख दर्रा आसानी उत्तराखंड के धारचूला से जुड़ जाएगा। इस सड़क की लंबाई 80 किलोमीटर है। मानसरोवर लिपुलेख दर्रे से करीब 90 किलोमीटर दूर है। पहले वहां पहुंचने में तीन हफ्ते का समय लगता था। अब कैलाश-मानसरोवर जाने में सिर्फ सात दिन लगेंगे।
बूंदी से आगे तक का 51 किलोमीटर लंबा और तवाघाट से लेकर लखनपुर तक का 23 किलोमीटर का हिस्सा बहुत पहले ही निर्मित हो चुका था लेकिन लखनपुर और बूंदी के बीच का हिस्सा बहुत कठिन था और उस चुनौती को पूरा करने में काफी समय लग गया। इस रोड के चालू होने के बाद भारतीय थल सेना के लिए रसद और युद्ध सामग्री चीन की सीमा तक पहुंचाना आसान हो गया है। लद्दाख के पास अक्साई चीन से सटी सीमा पर अक्सर चीनी सैनिक घुसपैठ करते आए हैं। अगर तुलना की जाए तो लिंक रोड के बनने से लिपुलेख और कालापानी के इलाके में भारत सामरिक तौर पर भारी पड़ सकता है। दो साल पहले चीनी सेना ने पिथौरागढ़ के बाराहोती में घुसपैठ की कोशिश की थी। इस लिंक रोड के बनने के बाद चीनी सेना ऐसी गुस्ताखी नहीं कर पाएगी।