कोरोना वायरस के मद्देनजर हुए देशव्यापी लॉकडाउन के पचास दिन पूरे होने वाले हैं. इस दौरान देश भर के विभिन्न क्षेत्रों में आम लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सीमित हुई है.
गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले गंभीर रोगों के मरीजों के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना इस समय बुरी तरह प्रभावित है.
मालूम हो कि इस योजना के शुरू होने के बाद राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसी को बंद करके इसकी जगह परिवार और कल्याण मंत्रालय से संबद्ध कार्यालय के रूप में राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) बनाया गया था. देश भर में आयुष्मान भारत को लागू करने के लिए यह सर्वोच्च निकाय है.
इस योजना के पैकेज के तहत 825 तरह की बीमारियों को कवर किया जाता है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एनएचए डेटा की मानें तो फरवरी से अप्रैल के बीच सरकारी और निजी अस्पतालों में कोविड- 19 से अलग इलाज वाले गंभीर रोगों संबंधित प्रक्रियाओं में 20 फीसदी की गिरावट देखी गई है.
सरल शब्दों में कहें, तो इस योजना के तहत निजी या सरकारी अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीजों की संख्या तेजी से घटी है. इन महीनों में योजना के तहत आने वाले रोगियों की संख्या 1,93, 679 से घटकर 1,51,672 पर आ गई है.
एनएचए द्वारा दिए गए आकंड़ों के अनुसार, फरवरी से अप्रैल के बीच कैंसर संबंधी उपचार प्रक्रियाओं में 57 फीसदी की गिरावट आई है, कार्डियोलॉजी यानी हृदय संबंधी में 76% और ऑब्सटेट्रिक्स और गायनोकोलॉजी (प्रसूति व स्त्री रोग) से जुड़ी प्रक्रियाओं में 26 प्रतिशत की कमी देखी गई है.
योजना के अंतर्गत इमरजेंसी रूम संबंधी 12 घंटे से कम समय के लिए भर्ती किए जाने वाले मामलों में 33 प्रतिशत की गिरावट आई है.