सैयद सलमान
महामारी कोरोना ने दुनिया भर में फैले इंसानों को एक तरह से घरों में कैद कर दिया है। पूरी दुनिया में फैली यह बीमारी दुनिया को नए ढंग से देखने का कारण भी बन रही है। दुनिया भर की सरकारों की तरह ही हमारे यहां भी केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारें कोरोना वायरस की चुनौती से निपटने के लिए परिश्रम कर रही हैं। सरकारों का साथ देने के लिए विभिन्न सरकारी और निजी संगठन भी इस अवसर पर विभिन्न प्रयत्न कर एहतियाती उपाय कर रहे हैं। लोगों में महीने भर के लॉकडाउन के बावजूद जागरूकता की कमी से इन संगठनों को थोड़ी-बहुत परेशानियों का भी सामना करना पड़ रहा है। एक दुःखद बात यह रही कि हिन्दुस्थान में घटी कुछ घटनाओं के परिणामस्वरूप इस महामारी के फैलाव के दौरान मुसलमानों और इस्लाम को भी निशाना बनाया गया। मीडिया और कुछ दलों के आईटी सेल ने इस बीमारी को फैलाने के लिए मुसलमानों को दोषी ठहराया। खासकर उनके निशाने पर तब्लीगी जमात रही। शुरुआती आंकड़े भी तब्लीगी जमात के विरुद्ध गए। हालांकि यह बात समझ से परे है कि जमातियों से कहाँ चूक हुई और तब्लीगी जमात ने इस महामारी के फैलाव की खबरों के बीच निमाजुद्दीन मरकज में कार्यक्रम क्यों आयोजित किया और हजारों लोगों की भीड़ क्यों इकठ्ठा की? जबकि चीन, अमेरिका, इटली, ईरान और गल्फ देशों में इस बीमारी के फैलने और एहतियाती कदम उठाये जाने की खबरें प्रमुखता से अख़बारों, टीवी और सोशल मीडिया पर आनी शुरू हो गई थीं।
कोरोना महामारी के प्रकोप के बीच ही रमजान का महीना भी आ गया। उलेमा कराम ने इस बीच बड़ी समझदारी का मुजाहिरा किया और पहले ही गाइडलाइन जारी कर मुसलमानों से भीड़-भाड़ से बचने, मस्जिदों की तरफ न जाने, घरों में ही तरावीह की नमाज पढ़ने और घरों में रहकर ही इबादत करने को कहा। इस्लाम ने हमेशा बीमारियों से निपटने के लिए जहां दुआओं पर जोर देने का आग्रह किया है, वहीं दूसरी तरफ सावधानी बरतने का भी निर्देश दिया है। अन्य सभी धर्मों की तरह इस्लाम की भी मान्यता है कि ईश्वर की प्रार्थना और दुआ के साथ किया गया कार्य ही सफल हो सकता है। पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब ने दीनी शिक्षा के साथ-साथ महामारी रोगों की रोकथाम के लिए भी शिक्षाएं प्रदान की हैं। मोहम्मद साहब ने नसीहत की है कि यदि तुम्हें किसी भी स्थान पर महामारी के फैलने की सूचना मिले, तो तुम उस क्षेत्र में प्रवेश न करना और यदि तुम उस प्रभावित क्षेत्र में मौजूद हो तो उस क्षेत्र से बाहर न निकलना।
मोहम्मद साहब ने तो यहां तक कहा कि एक बीमार व्यक्ति को एक स्वस्थ व्यक्ति से नहीं मिलना चाहिए क्योंकि हो सकता है उसकी बीमारी से स्वस्थ व्यक्ति भी कहीं प्रभावित न हो जाए। सरकारों की ओर से जो यात्रा-प्रतिबंध और क्वारेंटाइन के दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं, वे दरसल इसी शिक्षा से मेल खाते हैं। इसलिए, मुसलमानों को यह बात समझना चाहिए कि अगर वह इस बीमारी से खुद और परिवार को भी बचा ले जाते हैं तो वो इस बीमारी को फैलाने के आरोप से भी बच सकते हैं। आज अगर कुछ मुसलमानों को क्वारेंटाइन या सोशल डिस्टेंसिंग अर्थात सामाजिक दूरी से संबंधित नियमों का पालन करना मुश्किल लग रहा है तो उन्हें समझना चाहिए कि मोहम्मद साहब ने तो इसे धार्मिक दायित्व बताया है। ऐसे में उनकी बातों पर अमल करना अपने नबी की सुन्नत पर अमल करना ही कहा जाएगा। और अगर मोहम्मद साहब की बातों को न माना तो क्या कहा जाएगा इसका जवाब मुसलमान खुद दें तो बेहतर है।