इंटरनेट की भाषा में ट्रोल उस व्यक्ति को कहते हैं जो किसी ऑनलाइन कम्युनिटी में अभद्र, अपमानजनक, भड़काऊ, या अनर्गल पोस्ट करता है.
इस लेख में वर्तमान भारतीय परिप्रेक्ष्य में पाए जाने वाले ट्रोल्स का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया जा रहा है.
काफी बड़ी संख्या में ट्रोल्स का विश्लेषण करने के बाद मैंने पाया है कि पाश्चात्य जगत के सामान्य विश्वास के विपरीत, हमारे यहां ट्रोल्स का उद्देश्य मनोरंजन करना, चिढ़ाना, अपनी ओर ध्यान आकर्षित करना या किसी सर्वमान्य बात का बेवजह खंडन करके किसी चल रही बहस में व्यवधान उत्पन्न करना नहीं होता.
उनका उद्देश्य कहीं गहरा है. हमारे यहां ट्रोलिंग एक सोचे-समझे एजेंडा के तरह की जाती है. उसका एक उद्देश्य अपना संख्या बल दिखाना भी होता है जो अप्रत्यक्ष रूप से एक धमकी होती है कि हम तर्क से नहीं तो संख्या बल से आपको दबा देंगे.
इसी कारण से ट्रोल्स की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए. आम तौर पर यह सलाह दी जाती है कि ट्रोल्स को जवाब देना उनको बढ़ावा देना है.
लेकिन पहली बात तो यह कि कहीं इक्का-दुक्का ट्रोल्स होते तो उनकी उपेक्षा आसानी से की जा सकती है, यहां हजारों ट्रोल्स हैं.
दूसरे, हमारे यहां ऐसे ट्रोल्स हैं जो हिंसा और यौन हिंसा दोनों की धमकी दे रहे होते हैं जिनकी रिपोर्ट पुलिस में करना आवश्यक हो सकता है.