प्राकृतिक आपदाएं प्रकृति की मुखरता का माध्यम मानी जाती रही हैं। प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को लेकर इंसानी गतिविधियों के खिलाफ कुदरत द्वारा विरोध का जताने का जरिया कही जाती रही हैं। यही वजह है कि पीड़ा की पोटली साथ लानेवाली किसी विपदा से कोई न कोई सकारात्मक पहलू भी जुड़ा होता है। इन दिनों कोरोना संकट से भारत ही नहीं पूरी दुनिया जूझ रही है। लॉकडाउन में इन्सान घरों में कैद हो गए हैं। उनकी भागती-दौड़ती जिन्दगी में ठहराव आ गया है लेकिन इंसानों के इस ठहराव ने प्रकृति के ठहरे हुए जीवन को गति दी है। कुदरत के खूबसूरत रंगों से हमें फिर रूबरू करवाया है। इन दिनों देश ही नहीं दुनिया भर से ऐसी खूबसूरत तस्वीरें सामने आ रही हैं, जो बताती हैं कि कुदरत ने अपनी जगह फिर हासिल कर रही है। अपना वो हिस्सा वापस ले रही है जिसपर इंसानों ने हर हद को पार कर कब्जा जमा लिया था।
कोरोना वायरस संक्रमण के फैलाव से बचाव के लिए चल रहे 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से जल-थल और वायु के प्रदूषण में कमी आई है। देश के महानगरों की दमघोटू आबोहवा अब अच्छी और संतोषजनक श्रेणी में आ चुकी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन के चलते गंगा नदी का जल भी फिर से स्वच्छ होने लगा है। जानकार राष्ट्रीय नदी गंगा के जल में प्रदूषण में 40 से 50 फीसदी सुधार का दावा कर रहे हैं।
राजधानी दिल्ली में यमुना नदी में गंदगी के कारण फैले रहनेवाले सफेद झाग की जगह अब पानी स्वच्छ दिख रहा है। आसमान से छंटे धुएं के गुबारे के चलते पंजाब के जालंधर से हिमाचल की बर्फीली चोटियां नजर आने लगी हैं। यह सब बरसों बाद देखने में आ रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि देश के 103 शहरों में से 90 से अधिक शहरों में पिछले कुछ दिनों में न्यूनतम वायु प्रदूषण दर्ज किया गया है। लॉकडाउन के मात्र 4 दिन के अंदर ही देश के कई शहरों का एयर क्वालिटी इंडेक्स 50 के करीब आ गया था।
अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से एयर क्वालिटी इंडेक्स 50 होना वातावरण में शुद्ध सांस लेने लायक हवा होने का संकेत है। दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार राजधानी दिल्ली में इन दिनों एयर क्वालिटी इंडेक्स पिछले छह सालों के सबसे बेहतर स्तर पर है। जल और वायु ही नहीं परिवेश में ध्वनि प्रदूषण भी कम हुआ है।