विदेश से लौट रहे भारतीयों या कोरोना वायरस से संक्रमित होने के संदिग्ध विदेशियों को लाने-ले जाने, आइसोलेट करने, क्वारंटीन करने, पनाह देने और इलाज करने के लिए भारत सरकार ने काफ़ी पहले ही आर्मी, नेवी और एयरफ़ोर्स की काबिलियत पर भरोसा करते हुए उन्हें इन चीज़ों की ज़िम्मेदारी सौंप दी थी. इस काम में इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) को भी लगाया गया था.
क्या इन संस्थानों का इस्तेमाल राष्ट्रीय राजधानी में पैदा हुए प्रवासी मज़दूरों के संकट से निबटने में भी किया जा सकता था? अगर ऐसा ही कोई संकट देश के किसी दूसरे हिस्से में पैदा होता है तो क्या ये एक भूमिका निभा सकते हैं?
सरकार किस तरह से आर्म्ड फ़ोर्सेज़ का इस्तेमाल कर सकती थी?
सेंट्रल रिज़र्व पुलिस फ़ोर्स (सीआरपीएफ़) के डायरेक्टर जनरल ए.पी माहेश्वरी के मुताबिक, 'अभी तक इस तरह की कोई चर्चा नहीं हुई है. लेकिन हम इस आइडिया को लेकर ओपन हैं.' सीआरपीएफ़ सबसे बड़ा केंद्रीय आर्म्ड पुलिस फ़ोर्स है.
केंद्रीय निर्देशों के अभाव में, हर फ़ोर्स अपने ख़ुद के तरीक़े से सहयोग करने की कोशिश कर रही है.
मिसाल के तौर पर, सीआरपीएफ़ ने पूरे देश में अपनी फ़ॉर्मेशंस को लिखा कि वे राज्य सरकारों के संपर्क में रहें और उनकी मदद करें.