जिस पीढ़ी ने बालासाहेब, मार्मिक तथा शिवसेना का शुरुआती झंझावात का समय देखा है, वो पीढ़ी आज ६०-६५ साल से ज्यादा उम्र की है। अब बालासाहेब सशरीर नहीं हैं फिर भी उन्होंने महाराष्ट्र को अपने राजनीतिक कार्टूनों से युवावर्ग में जोश भर देनेवाले वक्तृत्व से तथा दूरदृष्टि युक्त नेतृत्व से प्रवाहित अनंत ऊर्जा से आनेवाली पीढ़ी को समृद्ध किया है। अब तो राज्य का नेतृत्व करने का अवसर भी बालासाहेब के सुपुत्र उद्धव ठाकरे को मिल गया है। प्रबोधनकार के समर्पित सामाजिक कार्यों की थाती बालासाहेब के बाद उनके वारिस फिर अगली पीढ़ी में जाने का मतलब सिर्फ ईश्वर की इच्छा ही नहीं बल्कि इसके पीछे ठाकरे खानदान द्वारा की गई तपस्या, त्याग व समाज को कुछ-न-कुछ देने की भावना का संस्कार है।
बालासाहेब ठाकरे के नाम का स्मरण करते ही आंखों के सामने बालासाहेब का समस्त व्यक्तित्व व कृतित्व सामने आ जाता है। ‘मार्मिक’ में बालासाहेब के राजनीतिक कार्टून, मराठी मनुष्यों को जागृत करनेवाले अग्रलेख, दशहरे के अवसर पर शिवतीर्थ पर लाखों जनसमुदाय को मंत्रमुग्ध कर देनेवाले भाषण, १९६९ के सीमा आंदोलन से लेकर १९९३ में बाबरी ढांचा ध्वस्त होने के बाद मुंबई में उभरे सांप्रदायिक दंगों में मुंबईकरों की रक्षा करने की उनकी प्रतिबद्धता- उनकी एक आवाज पर लाखों शिवसैनिकों की उमंग, उत्साह, ऊर्जा व जोश आज क्या कभी भी नहीं भूली जा सकती।