धूप की नदी में नहा रहे लोगों को राहत मिल गई। कहीं मूसलाधार, कहीं हिचकी-हिचकी ही सही, लेकिन लम्बी छुट्टी के बाद बारिश फिर आ पहुंची है। सुबह से ही पूरब की खटिया ख़ाली थी। धरती धूप का उबटन मलने से वंचित हो गई। सूरज की पहली किरण रात के माथे पर तिलक लगाने नहीं आई। सुबह की भी आधी आंख ही खुली थी। देखा- टीन की छत, तिर्पाल का छज्जा, पत्ते, परनाला, सब बजने लगे।
कार की छत पर ताल दे रही थी बूंदें। गीले बदन कुछ हवा के झोंके पेड़ों की शाख़ों पर चलते दिखाई दे रहे थे। शीशों पर फिसलता पानी कुछ अजीब कहानी लिख रहा था। बाहर खुलती खिड़की के ऊपर का छज्जा इठला रहा था। गारे-पत्थर की दीवारों पर फिर से भीगे-भीगे नक्शे बनने लगे थे। करीब महीने भर पहले बारिश हमें अपने हाल पर छोड़कर चली गई थी। जैसे अफगानिस्तान को आतंक की गर्मी में तपता छोड़कर चला गया है अमेरिका। बारिश लौट आई है पर अमेरिका का कोई ठिकाना नहीं है।
उसकी वापसी के कोई आसार नहीं हैं। अफगान धरती पर उनींदे पड़े अमेरिकी विमानों पर चढ़- चढ़कर आतंकवादी सेल्फी ले रहे हैं। हालांकि भारत ने तालिबान को चेताया है कि अफगान धरती का इस्तेमाल हमारे खिलाफ हुआ तो ठीक नहीं होगा। लेकिन कहते हैं- चोर चोरी से जाय, हेराफेरी से न जाय। इसलिए भारत को सावधान रहना ही होगा। सावधान है भी। कहीं कोई जैश- ए- मुहम्मद या उस जैसा कोई और आतंकी संगठन, कश्मीर में उत्पात मचाने के लिए तालिबान से संधि न कर ले, इस पर नजर गड़ाए रखना होगा।
हालांकि भारत की खुफिया एजेंसियां, सेना और सरकार की इच्छा शक्ति बेहद मजबूत है और तालिबान से या अफगान धरती से फिलहाल ही नहीं बल्कि आगे भी कोई खतरा पैदा होने की कोई आशंका नहीं है। बहरहाल, कोरोना की तीसरी लहर को मात देने के लिए भारत डटकर खड़ा है। वैक्सीनेशन पूरे जोरों पर है और तीसरी लहर की संभावना भी लगभग क्षीण दिखाई दे रही है। विकास दर सुधर रही है।