अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी और उप-राष्ट्रपति अमीरुल्लाह सलाह का राजधानी काबुल छोड़कर निकल जाना बताता है कि वे खून-खराबे से बचना चाहते थे, जिस कारण तालिबान को सत्ता शांतिपूर्ण ढंग से हस्तांतरित की जा सकी। तालिबान के काबुल पर कब्जा कर लेने से बदतर आशंका सच साबित हुई है और इससे अफगानिस्तान में अनिश्चय, अत्याचार और खासकर महिलाओं व बच्चों पर शोषण का नया सिलसिला शुरू हो सकता है, जो भारत के लिए बेहद चिंताजनक है। गौरतलब है कि तालिबान ने राष्ट्रपति भवन पर तो कब्जा कर लिया है, पर उनके समर्थकों को काबुल के प्रवेश द्वार पर ही रहने के निर्देश दिए गए हैं।
यह तालिबान की बदली हुई रणनीति के बारे में ही बताता है कि वे अफगान सेना और अपने विरोधियों से झड़प में उलझना नहीं चाहते। मजार-ए-शरीफ स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास में कार्यरत राजनयिकों और अधिकारियों तथा शहर तथा उसके आसपास रहने वाले भारतीयों को वायुसेना के विमानों से निकाल लिया गया है तथा काबुल स्थित भारतीय दूतावास ने वहां रह रहे भारतीयों से अपील की है कि व्यावसायिक उड़ान बंद होने से पहले वे अफगानिस्तान से निकल लें। अफगानिस्तान में सक्रिय भारतीय फर्मों से भी कहा गया है कि उड़ान बंद होने से पहले वे परियोजना स्थलों से भारतीयों को अविलंब हटा लें।