कोरोना महामारी के इस दौर में वाराणसी शहर के ज्यादातर घाटों पर अत्यधिक मात्रा में पाए गए हरे शैवाल ने भारत सरकार के गंगा स्वच्छता के नारे एवं परियोजना की पोल खोल दी है और तमाम सरकारी दावे धरे के धरे रह गए हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि कहीं यह गंगा के विलुप्त होने का संकेत तो नहीं है? ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि भारत सरकार के द्वारा गंगा पुर्नरुद्धार के नाम पर बनाई गईं कई परियोजनाएं घोटाला तो बनकर नहीं रह गई?
गौरतलब है कि गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के उद्देश्य से यानी कि इसके प्राकृतिक बहाव एवं उनकी निर्मलता को पुनः कायम करने के लिए भारत सरकार के द्वारा अब तक कई परियोजनाएं चलाई जा चुकी हैं और उन परियोजनाओं पर वर्ष 2015 तक भारत सरकार की संस्थाओं के जरिये लगभग चार हजार करोड़ रुपये की राशि भी खर्च की जा चुकी है. लेकिन उसका कोई ठोस नतीजा सामने नहीं दिख रहा है.