कोरोना काल में क्यों बढ़ी भारत में गरीबों की तादाद

DW

नई दिल्‍ली

साल 2020-21 के GDP आंकड़ों के मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था 7.3 फीसदी सिकुड़ गई है. हालांकि देश में इसे राहत की बात बताया जा रहा है क्योंकि केंद्रीय सांख्यिकी संगठन एनएसओ ने साल 2021 में अर्थव्यवस्था के 8 फीसदी सिकुड़ने का अनुमान लगाया था लेकिन विश्व बैंक के चीफ इकॉनमिस्ट रहे कौशिक बसु इसे राहत की बात नहीं मानते.
सरकार की नीतिगत असफलता की ओर इशारा करते हुए वे लिखते हैं, "साल 2020-21 के GDP ग्रोथ के आंकड़े के साथ भारत 194 देशों की रैंकिंग में 142वें नंबर पर आ गया है, जो कभी दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते देशों में एक था. जो ऐसा कह रहे हैं कि कोविड के चलते सभी देशों के साथ ऐसा हुआ है, उन्हें मैं सलाह दूंगा कि वे जाएं और फिर से अपनी स्कूली किताबों में रैंकिंग का मतलब पढ़ें."

बेरोजगारी और गरीबी चरम पर

साल 2021 में सिर्फ कृषि और बिजली को छोड़कर बाकी सभी सेक्टर कोरोना महामारी और लॉकडाउन से बुरी तरह प्रभावित हुए. व्यापार, निर्माण, खनन और विनिर्माण सेक्टर में भारी गिरावट दर्ज की गई. भारत में असंगठित क्षेत्र के 40 करोड़ कामगारों में से ज्यादातर इन्हीं सेक्टर में काम करते है. इन सेक्टर में आई बड़ी गिरावट के चलते बड़ी संख्या में ये कामगार बेरोजगार हुए. CMIE के आंकड़ों के मुताबिक अब भी देश में बेरोजगारी दर फिलहाल 11% से ज्यादा है.

कमाई न होने के चलते ये या तो गरीबी के मुंह में चले गए हैं या जाने वाले हैं. Pew के एक रिसर्च के मुताबिक महामारी के दौरान दुनिया भर में गरीबी के स्तर पर चले गए लोगों में 60 प्रतिशत लोग भारतीय हैं. भारत में मिडिल क्लास में आने वाले लोगों की संख्या में 3.2 करोड़ की गिरावट आई है और गरीब लोगों की संख्या में 7.5 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है. ऐसा तब हुआ, जबकि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में किसी गरीब परिवार को मिडिल क्लास में आने में 7 पीढ़ियों का समय लग जाता है.

प्रकाशित तारीख : 2021-06-04 07:03:00

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