ग्रामीण भारत में आरटीपीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट बहुत देर से आ रही है। तब तक मरीज लोगों के बीच रहता है जिस कारण संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है। वहीं आरटीपीसीआर टेस्ट की रिपोर्ट न होने की वजह से स्थिति बिगड़ने पर अस्पताल मरीजों को एडमिट भी नहीं ले रहे हैं। "सरकारी अस्पताल से आरटीपीसीआर की रिपोर्ट एक मई को आयी, जबकि पापा का टेस्ट हमने 24 अप्रैल को ही कराया था। 26 अप्रैल तक जब रिपोर्ट नहीं आयी और स्थिति बिगड़ने लगी तब हमने एक निजी लैब में जाँच कराई जिसमें रिपोर्ट पॉजिटिव आयी। शुक्र है कि हमने ये कदम उठाया और आश्चर्य की बात तो यह है कि सरकारी रिपोर्ट में निगेटिव में आयी है।" आयुषी कहती हैं।
आयुषी बागरिया उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 350 किलोमीटर दूर जिला कुशीनगर के पट्टी पडरौना में रहती हैं। 30 अप्रैल को उनके पिता अंजनी बागरिया की तबियत ख़राब हो जाती है। कुशीनगर के जिला अस्पताल में बेड नहीं मिलता तो परिजन उन्हें गोरखपुर लेकर जाते हैं, लेकिन वहां भी किसी अस्पताल में बेड नहीं मिलता।
फ़िलहाल उनकी स्थिति स्थिर हउ और घर पर ही उनका इलाज चल रहा है। रिपोर्ट आने में इतनी देरी क्यों हुई? क्या आपने जिला अस्पताल से फिर सम्पर्क नहीं किया, इस सवाल में जवाब में आयुषी कहती हैं, "मुझे तो लगा कि सरकारी अस्पताल में जाँच अच्छी होगी और रिपोर्ट भी जल्दी मिल जाएगी। लेकिन जब 4 दिन बाद भी रिपोर्ट नहीं आयी तो मैं अस्पताल गयी। वहां मुझे पता चला कि यहां तो बस सैम्पल लिया जाता है। जांच तो यहां से लगभग 90 किलोमीटर दूर होती है। अगर हम सरकार की रिपोर्ट का इंतजार कर रहे होते तो शायद पापा को बचा ही नहीं पाते।"