कोरोना का कहर: मजबूत स्वास्थ्य ढांचा चाहिए

अमर उजाला

नई दिल्‍ली

हर तरफ मौत, तबाही और निराशा का माहौल है। मुझे फोन उठाने, व्हाट्सएप देखने या फेसबुक खोलने में डर लगता है, क्योंकि ये हर दिन किसी ऐसे व्यक्ति की मौत की खबर लाते हैं, जिन्हें मैं जानती हूं या मिली हूं। टेलीविजन के पर्दे पर अंतिम संस्कार की जलती हुई चिताएं और शोकग्रस्त परिवारों की छवियां हैं। दिल्ली के श्मशान और कब्रिस्तान बड़ी मुश्किल से अंतिम संस्कार पूरा कर पा रहे हैं। शहर के सबसे बड़े श्मशान घाटों में से एक निगमबोध घाट में मृतकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए प्लेटफॉर्म की संख्या 36 से बढ़ाकर 63 कर दी गई है। अपने देश में ऑक्सीजन अब नया सोना है। लोग अपने प्रियजनों की जान बचाने के लिए आईसीयू बेड और चिकित्सीय ऑक्सीजन की व्यवस्था करने के लिए इधर-उधर भागते फिर रहे हैं। बहुत लोग इनकी व्यवस्था नहीं कर पा रहे। पिछले एक हफ्ते में हर दिन औसतन 3.5 लाख से अधिक संक्रमण के नए मामले देश में सामने आए हैं। 

महामारी की दूसरी लहर हमारे प्रियजनों को लीलती जा रही है। हममें से बहुत से लोग, जिन्हें आईसीयू बेड और ऑक्सीजन, दोनों की जरूरत होती है,  सुबह तक उन लोगों से संपर्क करने की कोशिश में जागते रहते हैं, जो इस मामले में मदद करने में सक्षम हो सकते हैं। इस गहन दुख और शोक के बीच भी कटु विडंबना को न पहचान पाना ज्यादा कष्टदायक है। जिस तरह हम अपने प्रियजनों के खोने का शोक मनाते हैं और पैसा खर्च करने के लिए तैयार रहने के बावजूद समय पर आईसीयू बेड तथा ऑक्सीजन सिलेंडर न मिल पाने का रोना रोते हैं, उसी तरह हमें देश के जर्जर स्वास्थ्य ढांचे की जानकारी भी होनी चाहिए, जिसे गरीब पहले से जानते हैं, जबकि हमें इसका एहसास अब जाकर हो रहा है। 

 

प्रकाशित तारीख : 2021-04-30 21:56:00

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