देवभूमि उत्तराखंड के द्वार पर बसा हरिद्वार का विशेष आध्यात्मिक महत्व है और 12 वर्ष के अंतराल पर होने वाले महाकुंभ का इस वर्ष यहां होना अपने आप में एक सुखद प्रसंग है। कुंभ का पौराणिक और धार्मिक महत्व सर्वविदित है। दुनिया भर के लोग कुंभ के अवसर पर गंगा में डुबकी लगाने आते हैं। प्रचीन समय से ऐसी मान्यता है कि साधु, संतों के बताए जीवन-आदर्श को व्यावहारिक जीवन में उतारने से कायाकल्प सुनिश्चित है और सफलता के द्वार भी खुलने लगते हैं। कुंभ स्नान वास्तव में एक रूपक या मेटाफर है। पुराण और धार्मिक स्तर पर इसका महत्व किसी से छिपा नहीं है, पर ऐसा नहीं है कि सिर्फ कुंभ स्नान करने भर से सबके पाप धुल जाएंगे। तो उपभोक्तावादी माहौल में जी रहे युवाओं के लिए इसकी क्या प्रासंगिकता है? वास्तव में कुंभ देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन और समागम है। इसमें सारा भारत इकट्ठा होता है।
प्रवासी भारतीयों का जमघट लगता है और विभिन्न संस्कृतियों का एक जगह मेल होता है। ऐसे मे युवाओं को धर्म की प्रगतिशील परिभाषा के साथ-साथ और देश व विश्व की संस्कृति को भी समझने का भी मौका मिलता है। यह मौका बार-बार नहीं आता है, बल्कि 12 वर्षों में एक बार ही आता है, वह भी ग्रहों और राशियों की विशेष युति होने पर आध्यात्मिक स्तर पर देखें, तो पूरे कुंभ के दौरान मानव शरीर में कई जैव-रासायनिक परिवर्तन आते हैं और अमृत तत्व की प्रधानता बढ़ जाती है। हरिद्वार में 1998 एवं 2012 मे आयोजित कुंभ के दौरान ब्रह्मवर्चस में वातावरण और मानव में होने वाले परिवर्तनों पर शोध किया गया था, जिसमें पाया गया कि मानव में उन तत्वों की प्रधानता बढ़ जाती है, जो हमारी कार्य क्षमता और चिंतन पर बेहतर और अनुकूल प्रभाव डालते हैं और मानव में अच्छी भावनाओं व खुशियों को जन्म देते हैं।