कुछ ही दिन पहले डासना, गाजियाबाद में एक मुस्लिम बच्चे आसिफ को बुरी तरह पीटा गया. उसका ‘घोर अपराध’ था एक मंदिर में पानी पीने चले जाना. दूसरी घटना में दिल्ली में खजूरी ख़ास इलाके में एक मुस्लिम युवक को अज्ञात कारणों से पटक-पटक कर मारा गया.
कुछ लोग ये तर्क दे सकते हैं कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जहां देश में साल में लगभग 52 लाख अपराध होते हैं, वहां हम महज दो अपराधों पर बहस क्यों कर रहे हैं.
इसका कारण इन अपराधों की अमानवीय क्रूरता है और पीड़ितों को अपमानित करना है. अगर दोनों पक्षों ने प्रहार किए होते तो उन्हें नज़रअंदाज़ किया जा सकता था. लेकिन इन घटनाओं में पीड़ित पक्ष नितांत असहाय थे और रंचमात्र भी प्रतिरोध करने में अक्षम थे.
इसलिए उन्हें पीटा नहीं, बल्कि बिना किसी भय के, अधिकारपूर्वक ‘दंडित’ किया जा रहा था, और यह निस्संदेह चिंता का विषय है.