वैसे तो आरक्षण का पेच गाहे-बगाहे किसी न किसी रूप में कोर्ट की चौखट पर बना रहता है, लेकिन इस बार मुद्दा आरक्षण की 50 फीसद की अधिकतम सीमा का है। सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा कि क्या आरक्षण की तय अधिकतम 50 फीसद सीमा पर पुनर्विचार की जरूरत है। क्या 50 फीसद की सीमा तय करने वाले इंदिरा साहनी फैसले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजा जाना चाहिए।
क्या संघीय ढांचे की नीति प्रभावित तो नहीं हुई
इसके साथ ही पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ यह भी विचार करेगी कि क्या संविधान के 102वें संशोधन से राज्यों का पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने के लिए कानून बनाने का अधिकार बाधित हुआ है और क्या इससे संविधान में दी गई संघीय ढांचे की नीति प्रभावित हुई है। राज्यों के अधिकारों से जुड़े इन कानूनी सवालों पर कोर्ट ने सभी राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।