जापान में किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों के लिए जीरो टॉलरेंस की नीति लागू है. दूसरे शब्दों में कहें तो यहां सभी प्रकार के नशीले पदार्थों पर रोक है. हालांकि 2020 में टोक्यो में कस्टम अधिकारियों ने साल 2019 के मुकाबले 70 गुना अधिक गांजा जब्त किया. ये सभी तरल पदार्थ के रूप में थे. जब अधिकारियों ने इसकी जानकारी दी तो यह पूरे देश की सुर्खियों में शामिल हो गया है. हालांकि,हेंप म्यूजियम के संस्थापक यूनीची ताकायासु के लिए इस आंकडें का नाटकीय मीडिया कवरेज काफी दुर्भाग्यपूर्ण रहा. वे कहते हैं, "जापान की मीडिया, पुलिस, स्थानीय अधिकारी और जनता, सभी लोग गांजा और भांग को एक साथ मिला देते हैं. जबकि गांजा एक ऐसी फसल है जिसका इतिहास जापान में सदियों पुराना है.”
ताकायासु एक बार फिर गांजे के खेतों को लहलहाते देखना चाहते हैं. हालांकि, वे यह भी स्वीकार करते हैं कि परंपरागत रूप से जापानी संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले लोगों को फसल के लाभ के लिए प्रेरित करना कठिन काम है. उन्होंने डॉयचे वेले से कहा, "जापानी लोग अतीत में कई चीजों के लिए गांजे का उपयोग करते थे लेकिन कानून बनने के कारण लोग भूल गए कि गांजे का किस तरह से इस्तेमाल किया जाता था.”
ताकायासु कहते हैं, "देश के कई हिस्सों में गांजा उगाया जाता था. इसका इस्तेमाल कपड़ों, घरेलू सामान और यहां तक कि धार्मिक आयोजनों में भी होता था लेकिन अब यह सब नहीं होता. मैं लोगों को गांजे से जुड़ी हमारी संस्कृति के बारे में याद दिलाना चाहता हूं और इसीलिए मैंने 2001 में म्यूजियम खोला. हालांकि, मुझे लगता है कि लोगों की मानसिकता को बदलना मुश्किल हो रहा है.” ताकायासु का म्यूजियम तोचीगी शहर में है. इनके समुदाय ने गांजा से काफी संपत्ति अर्जित की थी.
सदियों तक गांजा पूरे जापान में एक सामान्य फसल थी जिसका इस्तेमाल पवित्र रस्सियों में किया जाता था. इन रस्सियों का इस्तेमाल मंदिरों और सूमो पहलवानों के औपचारिक बेल्ट में होता था. गांजे के पौधों के डंठल के रेशों का इस्तेमाल कपड़े बनाने के लिए किया जाता था. इससे शर्ट के साथ मच्छरदानी, मछली पकड़ने के जाल, कागज और पारंपरिक दवा बनती थी, जबकि पौधे के बीजों का इस्तेमाल खाना पकाने में मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता था.