हमारे देश में बांध संबंधित आंदोलनों का लंबा इतिहास है. भारत का या शायद पूरे विश्व का भी पहला बांध-विरोधी आंदोलन पश्चिम महाराष्ट्र्र में पुणे शहर के पास मुला-मुठा नदी के संगम पर स्थित मुलशी बांध के ख़िलाफ़ था.
1920 के दशक के शुरू मे चला इस आंदोलन का नाम था ‘मुलशी सत्याग्रह’ और इसका नेतृत्व किया था स्वतंत्रता सेनानी पांडुरंग महादेव (सेनापति) बापट और पत्रकार विनायकराव भुस्कुटे ने.
यह आंदोलन सिर्फ इस बांध से प्रभावित 52 गांवों में ही नहीं बल्कि डूब क्षेत्र के बाहर भी फैल गया था. इस आंदोलन की खास बात ये है कि इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल थीं और वे जेल भी गईं.
इस आंदोलन से संबंधित जानकारी महात्मा गांधी के सहयोगी महादेवभाई देसाई की डायरी में भी मिलती है. 1923 में जब महादेवभाई और गांधीजी पुणे के यरवडा जेल में थे तब आंदोलन में शामिल विस्थापितों को भी उसी जेल में बंद किया गया था.
मुलशी सत्याग्रह टाटा कंपनी के ख़िलाफ़ था, जो बांध निर्माण करने और मुंबई शहर की बढ़ती बिजली जरूरत को पूरा करने के लिए इस जन आंदोलन को पूरी तरह से कुचल डालने में सफल हुई.
मुलशी बांध का निर्माण 1920 के दशक के बीच जाकर ख़त्म हुआ और ये बांध जो एक विद्युत परियोजना है, तभी से सक्रिय है. आज भी पुणे के पास मुलशी तालुका में इस आंदोलन में शामिल हुए विस्थापितों के वंशज रहते हैं, जो अपने पूर्वजों का संघर्ष नहीं भूले हैं.
इस साल इन्हीं लोगों ने मुलशी आंदोलन की शताब्दी मनाने का तय किया है. इस ऐतिहासिक आंदोलन की शताब्दी वर्ष में कुछ निष्ठावान स्थानीय नेताओं के साथ मुलशी बांध से प्रभावित कुछ गांवों में जाने का मौका मिला.