जो तय नहीं हुआ था, वह नहीं किया जाना चाहिए था. यह एक सामान्य स्वीकृत सिद्धांत है. लेकिन ऐसा अगर नहीं हुआ तो इसके लिए कौन सी परिस्थितियां जिम्मेदार हैं उनके बारे में बात किए बिना किसी घटना को समझा नहीं जा सकता.
26 जनवरी को किसान आंदोलन में शामिल लोगों के एक हिस्से ने तय रास्ते से अलग हटकर ट्रैक्टर जुलूस निकाला और दिल्ली के अलग अलग रास्तों से वे गुजरे.
वे दिल्ली के बीच आईटीओ और लाल किले तक आ पहुंचे. लेकिन सारे आंदोलनकारियों का यह एक छोटा हिस्सा भर था. इनके आने से उत्तेजना फैली. भगदड़ हुई. एक किसान मारा गया.
पुलिस के मुताबिक़ कुछ पुलिसवालों को चोट आई. इसकी खबर नहीं है कि पुलिस की आंसू गैस और लाठियों से उसके पहले कितने आंदोलनकारी ज़ख़्मी हुए. पुलिस की हिंसा को हिंसा नहीं माना जाता, कानून व्यवस्था बनाए रखने की कवायद भर ही है वह.