मेट्रो कारशेड के लिए फडणवीस सरकार ने रात के अंधेरे में दो हजार से अधिक पेड़ों को बेरहमी से काट दिया था। पर्यावरण प्रेमियों ने इसके विरोध में काफी हंगामा किया। कल मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने घोषणा की कि ‘आरे’ का जंगल वैसे ही रहेगा। मेट्रो कारशेड कांजुरमार्ग में बनाया जाएगा। पर्यावरण प्रेमियों को हर्षित करनेवाला यह निर्णय सरकार ने लिया है। इस निर्णय की जबरदस्त सराहना फिलहाल हो रही है। मुंबई जैसे शहर को प्राणवायु की आपूर्ति करनेवाला आरे का जंगल सवा करोड़ लोगों का फेफड़ा है। इस फेफड़े पर हमला किया होता तो मुंबई का दम घुट गया होता। जंगल, वृक्ष, नदियां, समुद्र, आदिवासियों को बचाना होगा, ऐसा सिर्फ बोलने भर से नहीं होगा। प्रकृति को मारकर विकास की र्इंट नहीं रखी जा सकती है। विदर्भ के विकास में सबसे बड़ी अड़चन मतलब वहां के घने जंगल हैं। उन घने जंगलों के बारे में निर्णय न लेनेवाले आरे के जंगलों को उजाड़ने के लिए एक रात में निर्णय ले लेते हैं। दो हजार से ज्यादा पेड़ काट दिए जाते हैं। उन पेड़ों पर पक्षियों के घोंसले, उनके बच्चे तड़पकर मर जाते हैं और इस अमानवता के विरुद्ध आवाज उठानेवालों को गिरफ्तार कर लिया जाता है। यह हरकत जंगलराज को शर्मसार करनेवाली ही थी। अब आरे के ‘कारशेड’ को कांजुरमार्ग में स्थानांतरित किए जाने पर भाजपा जैसे विरोधी दल द्वारा आलोचना की जा रही है। श्री देवेंद्र फडणवीस कहते हैं, ‘यह निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण है। केवल अंहकार के कारण यह निर्णय लिया गया है।’
श्री फडणवीस राज्य के मुख्यमंत्री थे। पर्यावरण प्रेमियों ने आरे के जंगल को बचाने के लिए आंदोलन किया। काटे गए पेड़ों पर माथा टेककर आंसू बहाए। यह अहंकार था क्या? फडणवीस सरकार ने अहंकार एक तरफ रखकर पर्यावरण प्रेमियों का मान रखा होता और जंगल से कारशेड को पहले ही कांजुर ले गए होते तो क्या बिगड़ जाता लेकिन उस समय भी अहंकार आड़े आया। विरोधियों का कहना ऐसा है कि कारशेड को आरे से कांजुर ले जाने पर ४,००० करोड़ रुपए का अतिरिक्त नुकसान भुगतना पड़ेगा। हर किसी के आंकड़े अलग हैं। मुख्यमंत्री ठाकरे द्वारा दी गई जानकारी बिल्कुल अलग है। कांजुर में कारशेड बनाने का खर्च सरकार को नहीं देना पड़ेगा। कांजुर की जगह सरकार की ही है इसलिए उस जमीन के लिए एक कौड़ी भी नहीं गिननी पड़ेगी। उस पर ‘आरे’ में जो इमारत आदि खड़ी की गई है, उसके बारे में कहते हैं कि इन इमारतों का इस्तेमाल अन्य सरकारी कार्यों के लिए किया जाएगा।
सरकार ने इससे पहले आरे के ६०० एकड़ भूखंड को जंगल घोषित किया था। मुख्यमंत्री ठाकरे ने अब ८०० एकड़ जमीन जंगल के रूप में घोषित कर दी है। दुनिया में जंगलों पर हर तरफ से अतिक्रमण हो रहे हैं। ऐसे में जंगल की व्याप्ति बढ़ाने के लिए ठाकरे सरकार का प्रयास महत्वपूर्ण है। प्रकृति प्रेमियों के लिए यह निर्णय आशादायक है। आरे प्रकरण में पर्यावरण प्रेमियों का नेतृत्व आदित्य ठाकरे ने किया था। उस समय वे मंत्रिमंडल में नहीं थे। आज वे राज्य के पर्यावरण मंत्री हैं। इसलिए ‘आरे’ के जंगल बचाने के लिए पर्यावरण मंत्री कौन-से कदम उठाएंगे, ऐसा सवाल पूछा गया। लेकिन ‘ठाकरे’ जबान के पक्के होते हैं। देश और राज्य के हित से जुड़ी किसी भी समस्या में वे जोड़-तोड़ नहीं करते हैं। यह इस निर्णय से स्पष्ट हो गया है। हर तरफ प्रकृति का क्षय हो रहा है। पहाड़ काटे जा रहे हैं।
वृक्ष तोड़े जा रहे हैं। नदी, नाले, समुद्र पाट कर व्यापार किया जा रहा है। बालू का अवैध उत्खनन चिंता का विषय सिद्ध हो रहा है। गंगा शुद्धिकरण श्रद्धा के साथ-साथ पर्यावरण से जुड़ा विषय है। गंगा शुद्धिकरण के लिए जापान सरकार की मदद ली जा रही है। प्रकृति के हम कर्जदार हैं, ऐसा इस पर प्रधानमंत्री मोदी का कहना है और यह उचित ही है। लेकिन मुंबई के जंगल को उजाड़कर आपने क्या हासिल कर लिया, इसका किसी के पास जवाब नहीं है। शहर के बीच में जंगल का होना मुंबई के हित की बात है, इसे उजाड़ना क्रूरता ही है। मौसम में बदलाव का संकट दुनिया के समक्ष निर्माण हो रहा है। ऐसा इंसान द्वारा प्रकृति से बैर तैयार किए जाने के कारण ही हो रहा है। ‘मेट्रो’ कारशेड आरे के जंगल से कांजुर के सपाट मैदान पर ले गए, इस पर विरोधियों को तांडव करने की क्या जरूरत है। जंगल को बचाना और उसके लिए आंदोलन करना गुनाह नहीं है और इसलिए आंदोलनकारियों पर से सभी आपराधिक मामले सरकार ने वापस लेने का निर्णय लिया है। राजनैतिक अपराध कई बार वापस लिए जाते हैं लेकिन पर्यावरण रक्षा के लिए लड़नेवालों को जीवनभर के लिए गुनहगार ठहराया जाता है।
खून-बलात्कार करनेवालों का समर्थन राजनैतिक स्वार्थ के लिए सीधे किया जाता है। परंतु पेड़ बचाओ, जंगल बचाओ, ऐसा कहनेवालों को गुनहगार ठहराकर उनका शोषण किया जाता है। ‘आरे’ के जंगल में स्थित दो हजार से अधिक पेड़ों का एक रात में सामुदायिक कत्ल कर दिया गया। पेड़ों में भी जीव है, यह स्वीकार करें तो आरे के जंगल का सामुदायिक हत्याकांड ही मानना होगा। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अब यहां के मेट्रो कारशेड को कांजुरमार्ग में स्थानांतरित करने का निर्णय लेकर उन मृत पेड़ों को श्रद्धांजलि अर्पित की है। पर्यावरण पर सिर्फ भाषण देने से क्या होगा? साहस के साथ निर्णय लेना पड़ता है। महाराष्ट्र के वृक्ष, लताएं, नदी, पेड़, पक्षी, पानी, पहाड़, खाई आज आनंद से झूम रहे होंगे। यह आनंद दीर्घकाल तक टिका रहे।